रिश्ता किसे कहते हैं ?/rishta kise kahate hain.
दोस्तों, आज कल 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' फेम दिव्या भटनागर बहुत चर्चा में है। उसकी मौत तो covid 19 के कारन हुई है। लेकिन उसके परिवार और friends के द्वारा उसके पति पर उनकी मौत का इल्जाम लगाया जा रहा है। ( हम यहाँ किसी पर भी आरोप नहीं लगाते, ये एक जांच का विषय है। )
ऐसा ही कुछ सुंशांत सिंह राजपूत के मौत के वक्त भी हुआ था। उनके मृत्यु के बाद उनके परिवार और friends ने भी ऐसे ही किसी पर आरोप लगाया था। उनकी मौत का जिम्मेदार माना था।
इनकी स्टोरी सच है या क्या जूठ ये हम नहीं जानते, न ही हम उसके बारे में कोई discussion करेंगे। मगर ये सुनने के बाद एक विचार मेरे मन में ये सवाल उठा की ये हो-हल्ला उनकी मौत के बाद ही क्यू ? उनसे पहले क्यों नहीं? अब ऐसा तो नहीं हो सकता की उनके रिश्तेदारों को इस चीज़ के बारे में बिलकुल पता ही न हो?
ये बात केवल दिव्या भटनागर या सुशांत सिंह राजपूत की ही नहीं है। ये दोनों की story तो इसलिए चर्चा में है, क्योकि ये दोनों काफ़ी successful हस्तिया थी।
मगर हमने अपने आसपास और समाज में भी ऐसे कई उदाहरण देखे है जिसमे हमने उस व्यक्ति के जाने के बाद ही उनके लिए लड़ते उनके 'अपनों' को देखा है। तब सवाल ये आता है की ये लड़ाई उनके जीवित रहते क्यों नहीं?
रिश्तो की परिभाषा।
रिश्ता किसे कहते हैं ? हमारे जीवन में रिश्तो का महत्व बहुत ही ज़्यादा है। हमारे समाज की रचना ही एक ऐसी रचना है जिसमे जन्म से लेकर मृत्यु तक हम रिस्तो से बंधे हुए होते है। ये समाज रचना इसलिए बनाई गई है, ताकि यदि हमें कोई परेशनी हो तो हम हमारे 'अपनों' के साथ मिलकर उसको सुलझाया जा सके।
लेकिन आज का समाज रिश्तो की इस परिभाषा में फिट ही नहीं बैठता। आज हमें दुसरो के लिए तो समय ही समय है, पर बात जब आती हैं अपनों की तो हमारे पास समय की कमी रह जाती है, ऐसा क्यों?
कई बार जब हमारे अपने जब कोई जीवन की कठिनाई की शिकायत करते है, तो एक दो बार तो हम सुन लेते है। पर बार बार नहीं। धीरे धीरे हम उनको इग्नोर करना चालू कर देते है। ( शायद हमें ये लगता है की कही हमें उनकी जिम्मेदारी न उठानी पड़ जाये।) indirectly उनको ये मैसेज दे दिया जाता है की हमें तुम्हारी परेशानी में कोई interest नहीं है।
धीरे धीरे वे भी ये समज जाते है और वो हमसे दूर होते जाते है। हमें लगता ही की अब सब ठीक हो गया होगा और एक दिन अचानक ही एक न्यूज़ मिलती है की अब वो नहीं रहे।
जब हम रिश्ते के लिए वक्त नहीं निकालते, तब वक्त हमारे बिच से रिश्ता निकाल देता है।
दोस्तों, हमें ये भूलना नहीं चाहिए की कोई हमें अपनी परेशानी तब बताएगा जब उसे सच में हमारे help की जरुरत होगी। वो सारे उपाय आजमा चूका होगा। जब उससे वो problem solve नहीं हुआ होगा और जब उसकी उम्मीद के सारे दरवाजे बंद हो चुके होंगे, तब वो हमारे पास आता है इस उम्मीद में की शायद वो हमारा problem solve कर पायेगा।
लेकिन जब हम उसके problem को सुनने तक को तैयार नहीं होते तब उसके दिल पर क्या गुजरती होगी उसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते। कुछ लोग तो ऐसे होते है की, दुसरो की problem पर सब के सामने उनका मजाक तक उड़ाने में नहीं चूकते। ऐसे लोगो से हम क्या उम्मीद कर सकते है?
चीजों से क़ीमती है रिश्ता
ये बात सच भी है। हम अक्सर बच्चो को चीज़ो के तोड़ने पर डाट देते है। ये हर घर में होता है, क्यों? ये सवाल हमें हमेशा अपने आप से पूछना चाहिए। ये बात जितनी सामान्य लगती है, सोचने के बाद उतनी ही गहरी भी लगेंगी ये बात मैं दावे के साथ कहती हूँ।
कहने का मतलब केवल इतना ही है की हम अक्सर रिश्तो को इतनी अहमियत नहीं देते क्योकि ये हमे free में या easily मिले है। कुछ जन्म के साथ ही मिलते है और कुछ जीवन में चलते चलते। लगभग हर रिश्ता हमें free में मिलता है इसीलिए हमें उसकी कदर या क़ीमत नहीं होती।
यदि हम इस बात पर गौर से सोचेंगे तब पाएंगे की जो लोग suicide करते है या जो लोग समाज से कट ऑफ हो जाते है, उन्होंने पहले अपने रिश्तेदार, friends, colleague सभी लोगो से मदद की गुहार लगाई होती है।
एक बार नहीं बार बार उन्होंने अपने 'अपनों' को मदद के लिए बुलाया होगा। पर जब कही से भी मदद नहीं मिली होगी तब जा कर उन्होंने अपना आखरी कदम उठाया होगा।
रिश्ते तब ख़त्म हो जाते है, जब पाँव नहीं दिल थक जाते है।
मोबाइल के रिश्ते
अपनों से मुँह मोड़ना इतना आसान नहीं होता। पर जब अपने ही गैर के जैसा बर्ताव करे तो क्या हो? दोस्तों आजकल हम मोबाइल रिश्ते ढूंढते है। उन रिश्तो में इतने मशगूल हो गए है की हमारे पास अपने रिश्ते के लिए समय ही नहीं।
क्या हो अगर हम मोबाइल में किसी friend से (जिनको हम ने कभी देखा ही न हो ) बात कर रहे हो और हमरे अपने parents या बच्चा या पति/पत्नी आकर हमें कुछ काम कहे या disturb करे तो?
हमें उन रिश्ते की परवाह है जो पता नहीं की वो सच में है भी या नहीं, पर हमें उनकी बिलकुल परवाह नहीं होती जो हमारे सामने होते है।
जो साथ है वो रिश्ते संभालते नहीं है लोग, और मोबाइल में से रिश्ते ढूँढना बखूबी जानते है लोग।दोस्तों, ये आज के युग की कड़वी सच्चाई है। इसको हम जुठला नहीं सकते। यही सबसे बड़ी बजह है की आज हम अपने अपनों से दूर होते जाते है। क्या हमने सोचा ही ऐसा क्यों?
रिश्तो के साथ एक जिम्मेदारी भी आती है, जो हर रिश्तो के साथ जुडी हुई होती है। आजकल हम अपनी जिम्मेदारी से भागते है। जब की मोबाइल के रिश्तो में कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती। मोबाइल के रिश्ते में केवल वही होता है जो हमें अच्छा लगता है। इसलिए हमें वो अच्छे लगते है।
पर हमें ये नहीं भूलना चाहिए की जीवन में विषम परिस्थितिया कभी भी आ सकती है। उसमे हमारा साथ हमारे अपने रिश्ते ही देंगे, मोबाइल के रिश्ते नहीं।
अपने अपनों को खोने से पहले उनके दर्द और तकलीफ को समज कर उनका साथ देना हमें सीखना होगा। हो सकता है की हम उनकी problem solve न भी कर पाए, तब भी अगर उनको केवल इतना ही अहसास कराया जाये की 'don't worry हम तुम्हारे साथ है', तब भी उनमे लड़ने की शक्ति आएगी, और वो अपनी समस्या ओ से उबर पाएंगे।
हमें ये नहीं भूलना चाहिए की आज उनकी बारी है कल हमारी भी हो सकती है।
दोस्तों, इन बातो के बारे में हमें सोचना चाहिए। जब रिश्ते है तब उनको निभाना हमें सीखना होगा। उनके जाने के बाद लड़ाई लड़ कर जित भी गए तब भी हमारी सब से बड़ी हार होगी।
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