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How society affects mental health\ success

एक बार कुछ scientists ने एक बड़ा ही interesting experiment किया.. उन्होंने 5 बंदरों को एक बड़े से cage में बंद कर दिया और बीचों -बीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे.. जैसा की expected था, जैसे ही एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी वो उन्हें खाने के लिए दौड़ा.. पर जैसे ही उसने कुछ सीढ़ियां चढ़ीं उस पर ठण्डे पानी की तेज धार डाल दी गयी और उसे उतर कर भागना पड़ा.. पर experimenters यहीं नहीं रुके, उन्होंने एक बन्दर के किये गए की सजा बाकी बंदरों को भी दे डाली और सभी को ठन्डे पानी से भिगो दिया.. बेचारे बन्दर हक्के-बक्के एक कोने में दुबक कर बैठ गए.. पर वे कब तक बैठे रहते, कुछ समय बाद एक दूसरे बन्दर को केले खाने का मन किया.. और वो उछलता कूदता सीढ़ी की तरफ दौड़ा.. अभी उसने चढ़ना शुरू ही किया था कि पानी की तेज धार से उसे नीचे गिरा दिया गया.. और इस बार भी इस बन्दर के गुस्ताखी की सज़ा बाकी बंदरों को भी दी गयी.. एक बार फिर बेचारे बन्दर सहमे हुए एक जगह बैठ गए... थोड़ी देर बाद जब तीसरा बन्दर केलों के लिए लपका तो एक अजीब वाक्य हुआ.. बाकी के बन्दर उस पर टूट पड़े और उसे केले खाने से रोक दिया, ताकि एक बार फिर उन्हे
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baccho ko kaise safal banaye

 एक अखबार वाला प्रात:काल लगभग 5 बजे जिस समय अख़बार देने आता था, उस समय रमेश बाबू उसको अपने मकान की गैलरी में टहलते हुए मिल जाते थे ।  प्रतिदिन वह रमेश बाबू के आवास के मुख्य द्वार के सामने चलती साइकिल से निकलते हुए अख़बार फेंकता और उनको 'नमस्ते बाबू जी' बोलकर अभिवादन करता हुआ फर्राटे से आगे बढ़ जाता था।  क्रमश: समय बीतने के साथ रमेश बाबू के सोकर उठने का समय बदलकर प्रात: 7:00 बजे हो गया। जब कई दिनों तक रमेश बाबू उस अखबार वाले को प्रात: टहलते नहीं दिखे तो एक रविवार को प्रात: लगभग 9:00 बजे वह उनका कुशल-क्षेम लेने उनके आवास पर आ गया।  तब उसे ज्ञात हुआ कि घर में सब कुशल- मंगल है, रमेश बाबू बस यूँ ही देर से उठने लगे थे । वह बड़े सविनय भाव से हाथ जोड़ कर बोला, "बाबू जी! एक बात कहूँ?" रमेश बाबू ने कहा... "बोलो" वह बोला... "आप सुबह तड़के सोकर जगने की अपनी इतनी अच्छी आदत को क्यों बदल रहे हैं? आपके लिए ही मैं सुबह तड़के विधानसभा मार्ग से अख़बार उठा कर और फिर बहुत तेज़ी से साइकिल चलाकर आप तक अपना पहला अख़बार देने आता हूँ...सोचता हूँ कि आप प्रतीक्षा कर रहे होंगे।&quo

Kisi ka bharosa mat todna

 भरोसा कल दोपहर घर के सामने छोटे से नीम के पेड़ के नीचे खड़ा होकर मैं मोबाइल पर बात कर रहा था। पेड़ की दूसरी तरफ एक गाय-बछड़े का जोड़ा बैठा सुस्ता रहा था और जुगाली भी कर रहा था। उतने में एक सब्जी वाला पुकार लगाता हुआ आया। उसकी आवाज़ पर गाय के कान खड़े हुए और उसने सब्जी विक्रेता की तरफ देखा।  तभी पड़ोस से एक महिला आयी और सब्जियाँ खरीदने लगी। अंत में मुफ्त में धनियाँ, मिर्ची न देने पर उसने सब्जियाँ वापस कर दी।  महिला के जाने के बाद सब्जी विक्रेता ने पालक के दो बंडल खोले और गाय-बछड़े के सामने डाल दिए... मुझे हैरत हुई और जिज्ञासावश उसके ठेले के पास गया। खीरे खरीदे और पैसे देते हुए उससे पूछा कि उसने 5 रुपये की धनियां मिर्ची के पीछे लगभग 50 रुपये के मूल्य की सब्जियों की बिक्री की हानि क्यों की ?  उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- भईया जी, यह इनका रोज़ का काम है। 1-2 रुपये के प्रॉफिट पर सब्जी बेच रहा हूँ। इस पर भी फ्री... न न न! मैंने कहा- तो गइया के सामने 2 बंडल पालक क्यों बिखेर दिया ?  उसने कहा- फ्री की धनियां मिर्ची के बाद भी यह भरोसा नहीं है कि यह कल मेरी प्रतीक्षा करेंगी किन्तु यह गाय-बछड़ा मेरा जरूर

Ram katha.

अनकही रामकथा।   श्री रामजी अपार गुणों के समुद्र हैं, क्या उनकी कोई थाह पा सकता है? संतों से मैंने जैसा कुछ सुना था, वही आपने सुना है, वही आपको सुना रहा हुं।  राजा जनक के शासनकाल में एक व्यक्ति का विवाह हुआ। जब वह पहली बार सज सँवरकर ससुराल के लिए चला, तो रास्ते में चलते चलते एक जगह उसको दलदल मिला, जिसमें एक गाय फँसी हुई थी, जो लगभग मरने के कगार पर थी।  उसने विचार किया कि गाय तो कुछ देर में मरने वाली ही है तथा कीचड़ में जाने पर मेरे कपड़े तथा जूते खराब हो जाएँगे, अतः उसने गाय के ऊपर पैर रखकर आगे बढ़ गया। जैसे ही वह आगे बढ़ा गाय ने तुरन्त दम तोड़ दिया तथा शाप दिया कि जिसके लिए तू जा रहा है, उसे देख नहीं पाएगा, यदि देखेगा तो वह  मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी।  वह व्यक्ति अपार दुविधा में फँस गया और गौ शाप से मुक्त होने का विचार करने लगा।  ससुराल पहुँचकर वह दरवाजे के बाहर घर की ओर पीठ करके बैठ गया और यह विचार कर कि यदि पत्नी पर नजर पड़ी, तो अनिष्ट नहीं हो जाए। परिवार के अन्य सदस्यों ने घर के अन्दर चलने का काफी अनुरोध किया, किन्तु वह नहीं गया और न ही रास्ते में घटित घटना के बारे में किसी को बताय

Ashtavakra Gita kaise bani ?

राजा जनक और अष्टावक्र प्राचीन भारत में मिथिला के राजा जनक के नाम से प्रसिद्ध एक धर्मात्मा राजा थे। वे बहुत ज्ञानी और साधु प्रवृत्ति के थे। उन्हें सत्य की खोज थी और वे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। एक दिन उन्होंने घोषणा की कि जो भी उन्हें ब्रह्मज्ञान का सच्चा अर्थ समझा देगा, उसे वे अपना गुरु बना लेंगे। राजा जनक की इस घोषणा को सुनकर कई विद्वान, ऋषि-मुनि और साधु उनके दरबार में पहुँचे, लेकिन कोई भी राजा जनक की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका। तब एक दिन अष्टावक्र नामक एक युवा ऋषि वहाँ पहुँचे। अष्टावक्र का शरीर विकृत था, उनकी आठ अंग टेढ़े-मेढ़े थे, इसलिए उनका नाम अष्टावक्र पड़ा। जब अष्टावक्र दरबार में प्रवेश कर रहे थे, तो दरबारियों ने उनके विकृत शरीर को देखकर उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। अष्टावक्र ने इस पर कुछ नहीं कहा और सीधे राजा जनक के पास पहुँचे। राजा जनक ने उनका आदरपूर्वक स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिए स्थान दिया। अष्टावक्र ने राजा जनक से पूछा, "राजन, आप किस खोज में हैं?" राजा जनक ने उत्तर दिया, "मुझे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करनी है।" अष्टाव