एक बहुत छोटा सा राज्य था। उस राज्य पर एक बड़े से राजा ने आक्रमण किया। उसको देखकर वह जो छोटा सा राज्य था उसके सेनापति ने कहा,” कि अब हम नहीं जीत पाएंगे, क्योंकि वह सेना हमसे बहुत ही बड़ी है। हम से 4 गुना ज्यादा है, और उनके साथ जो सामान है वह भी अत्यधिक सामान है ,और हम उसके सामने नहीं टिक पाएंगे।“ यह सुनकर राजा के गुरु जी ने कहा कि, “इस सेनापति को तुरंत ही जेल में डाल दो।“ राजा गुरु जी से पूछ कर ही सब कुछ करता था, इसलिए उन्होंने बिना प्रश्न किए सेनापति को तुरंत ही जेल में डलवा दिया। किंन्तु अब यह प्रश्न आया था कि सेनापति बनेगा कौन? और बिना सेनापति की सेना लड़ेगी कैसे ? गुरुजी ने कहा कि,” मैं सेनापति बन कर जाऊंगा।“ यह सुनकर राजा को बहुत ही आश्चर्य हुआ। क्योंकि गुरु जी को लड़ना तो दूर किंतु घोड़े पर चढ़ना भी नहीं आता था। किंतु राजा को अपने गुरु पर अपार विश्वास था। इसलिए उसने कुछ नहीं कहा। गुरुजी सेना को लेकर चले गए जब वह युद्ध के लिए जा रहे थे, तब रास्ते में एक मंदिर आया। गुरुजी ने कहा कि. “ हमें भगवान की आज्ञा लेनी चाहिए। उनसे पूछना चाहिए कि क्या हम यह युद्ध जित पाएंगे या नहीं?” एक सैनिक ने कहा किंतु, “ हम भगवान से वार्तालाप कैसे करेंगे?” तब गुरु जी ने कहा, “ कि तुम चिंता मत करो मैंने अपना सारा जीवन भगवान से वार्तालाप करने में ही बिताया है। इसलिए मैं जाकर आता हूं और पूछ कर आता हूं तब तक आप लोग यहां पर विश्राम करो।“ गुरुजी गए सारी सेना गुरुजी की प्रतीक्षा करने लगी। इतने में गुरु जी आए, सेना ने पूछा कि, “ भगवान ने क्या कहा?” तब गुरुजी ने कहा, “ कि यदि रात के अंधेरे में मंदिर की ओर से रोशनी आए तो समझ लेना कि हमारी जीत निश्चित है।“ सभी लोग उत्सुकता से रात की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ देर बाद रात हुई और सब ने देखा मंदिर की ओर से रोशनी आ रही थी। सभी लोग बहुत ही उत्साहित हो गए। उनको विश्वास हुआ कि अब उनको कोई नहीं हरा सकता है। और वह युद्ध करने के लिए कुच कर गए। और उन्होंने युद्ध में अदम्य साहस दिखाया और उस बड़ी सेना को बड़ी ही सरलता से हरा दिया। जब वापस आ रहे थे तब वापस से वही मंदिर रास्ते में आया। एक सैनिक ने कहा कि, “ हमें भगवान का धन्यवाद करना चाहिए, उन्हीं के आशीर्वाद से आज हमारी जीत हुई है।“ तब गुरुजी ने कहा कि’ “ अवश्य ही हमें भगवान का धन्यवाद करना चाहिए। केवल उनकी आशीर्वाद से हमारी जीत नहीं हुई है।“ सभी लोग आश्चर्यचकित हो। गए गुरु जी ने कहा’” इसमें आश्चर्यचकित होने वाली कोई बात नहीं है। वह दिया मैंने ही जलाया था। दिन के उजाले में उसने की रोशनी नहीं दिखाई देती थी। किंतू जैसे ही रात हुई वैसे ही वह दिया आप सबको दिखा और आप सब को लगा कि यह भगवान ने इशारा किया है और इसीलिए आप में एक विश्वास आया कि हम जीत पाएंगे और इसी विश्वास के बलबूते पर आज हम जीत कर आए हैं।“
सफलता या जीत केवल मेहनत और आपके प्रतिभा के बल पर नहीं मिलती है। किंतु उसमें विश्वास का भी उतना ही महत्व है। चाहे आप कितने भी मेहनत कर लो। चाहे आप कितने भी प्रतिभावान क्यों न हो किंतु, जब तक आपको अपने आप में विश्वास नहीं होगा अपने कार्य में विश्वास नहीं होगा तब तक आप सफल हो ही नहीं पाएंगे। कहीं लोग मंत्र जाप करते हैं धागा करते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वह सफल होंगे और वह होते भी है क्योंकि उनको यह विश्वास है कि अगर मैं करूंगा तो मैं सफल जरूर होगा। अगर उनको उनमें विश्वास नहीं होगा तो वह मंत्र और धागा भी सफलता नहीं दिलाएगा। उसका अर्थ यह है कि अगर आप मंत्र जाप या दौरा ना भी करो किंतु, अपने मेहनत पर अपने कार्य पर विश्वास करो तो भी आप सफल हो पाएंगे। इसलिए अपने कार्य पर विश्वास करो अपने मेहनत पर विश्वास करो और आगे बढ़ो।
रिश्ता किसे कहते हैं ?/rishta kise kahate hain. rishte ehsas ke hote hain दोस्तों, आज कल 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' फेम दिव्या भटनागर बहुत चर्चा में है। उसकी मौत तो covid 19 के कारन हुई है। लेकिन उसके परिवार और friends के द्वारा उसके पति पर उनकी मौत का इल्जाम लगाया जा रहा है। ( हम यहाँ किसी पर भी आरोप नहीं लगाते, ये एक जांच का विषय है। ) ऐसा ही कुछ सुंशांत सिंह राजपूत के मौत के वक्त भी हुआ था। उनके मृत्यु के बाद उनके परिवार और friends ने भी ऐसे ही किसी पर आरोप लगाया था। उनकी मौत का जिम्मेदार माना था। इनकी स्टोरी सच है या क्या जूठ ये हम नहीं जानते, न ही हम उसके बारे में कोई discussion करेंगे। मगर ये सुनने के बाद एक विचार मेरे मन में ये सवाल उठा की ये हो-हल्ला उनकी मौत के बाद ही क्यू ? उनसे पहले क्यों नहीं? अब ऐसा तो नहीं हो सकता की उनके रिश्तेदारों को इस चीज़ के बारे में बिलकुल पता ही न हो? ये बात केवल दिव्या भटनागर या सुशांत सिंह राजपूत की ही नहीं है। ये दोनों की story तो इसलिए चर्चा में है, ...
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