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आखिर लोग क्यों करते हैं आत्महत्या


  'यार  एक  बार  तो  कहता'  यह  वाक्य  हम  सब  ने  अभी-अभी बहुत  बार सुना  जब  सुशांत  सिंह  राजपूत  ने  आत्महत्या  की  थी।  यह  वाक्य हम तब  बहुत बोलते  हैं  जब  हमारा  करीबी कोई  आत्महत्या  करता  है।  या  आत्महत्या करने  की  कोशिश  करता  है।  मैं  अक्सर  सोचती  हूं  कि  क्या  जो  आत्महत्या करता  हैक्या वह  वाकई  में  किसी  को  कुछ  नहीं  कहता?  अंदर  ही  अंदर घुटता है और  उसके एक  दिन  अपना  जीवन  जो  व्यक्ति  को  सबसे  ज्यादा  प्यारा  होता  है किसी  को  भी  कुछ  भी  कहे  बिना अलविदा   कह देता  है? क्या यह व्यक्ति उसको भी कुछ भी नहीं कहता जो उसके साथ में रहा है? जो उसके या साथ में पला बड़ा है? अपने मां-बाप, अपने भाई-बहन, पत्नी यह रिश्ते हमारे बहुत ही करीब होते हैं, हम सभी लोग कुछ रिश्तो के लिए जीते हैं। क्या यह व्यक्ति उसको भी कुछ नहीं कह पाता? क्या सच में यही सत्य है यह सत्य कुछ और है? जी हां, हो सकता है कि वह व्यक्ति ने अपनों को कुछ कहा हो, पर अपने समझ ना पाए हो या फिर नजरअंदाज कर दिए गए हो?


आजकल  के  जीवन  में  हम  इतने  बिजी  है  हमें  अपनों  के  दुख  अपनों  की  तकलीफ  दिखती  ही  नहीं,  या  फिर  हम  जानबूझकर  देखना  ही  नहीं   चाहते  हैं। क्या  ऐसा  नहीं  होता  है  कि  आपके  अपने कुछ  ऐसी  चीजें  पर  जिससे  उसके  जीवन  में  तकलीफ  हो  और  वह  चीज  बार-बार  कहता  है  तो हम  उसे  एक  वक्त  के  बाद  इग्नोर  करने  लगते  हैं।  हमें  लगता  है  कि  यार  इसका  तो  यह  रोज का  है। वह  अपना  दुखड़ा  ऐसे  ही  रोता  रहता  है।  ऐसा  तो  सबके  जीवन  में  होता  है,  उसी  में  कुछ  कमी  होगी।  हम  उसको  समझने  की  कोशिश  नहीं  करते  है,  और  एक  वक्त  के  बाद  हम उसको  कॉल   उठाना  बंद  कर  देते  हैं। यदि  हम  कॉल  उठाइए  भी  तब  भी  हम  यही  जताने  की कोशिश  करते  हैं  कि  मुझे  तुममे  और  तुम्हारी  बातों  में  कोई  इंटरेस्ट  नहीं  है।  जबकि  उस  समय उसको  आपकी  सबसे  ज्यादा  आवश्यकता  होती  है।  वह  चाहता  है  कि  कोई  उसकी  मदद  करें,  कोई उसका  हाथ  थामे।  मगर  हमें  लगता  है  यदि  हमने  उसकी  मदद  कर  दी  तो  हमारे  गले  पड़  जाएगा। या  फिर  कोई  और  रीजन  से  हम  उससे  दूरी  बना  लेते  हैं। और  नतीजा  यह  होता  है  कि  वह  इंसान इतना  अकेला  हो  जाता  है,  उसके  अपने  होते  हुए  भी  वह  अपने  आप  को  अनाथ  समझने  लगता  है। और  एक  दिन  वह  किसी  की  भी  परवाह  किए  बिना  इस  दुनिया  को  अलविदा  कह  देता  है।  जब हमें  यह  पता  चलता  है  तो  हमें  शौक  लगता  है, (या  शायद  हम  दिखावा  करते  हैं।) हम  सबको  कहते रहते  हैं  कुछ  नहीं  था  पता  नहीं  उसने  ऐसा  क्यों  किया  हम  सब  को यह  कहते  हैं,  “काश  एक  बार  उसने  मुझसे  कहा  होता  तो  मैं  उसकी  जरूर  मदद  करता।“  उसको  ऐसे  करने  की  आवश्यकता नहीं  थी।  मगर  जब  वह  होता  है  तब  हम  सुनते  नहीं।


आपके  जीवन  में  ऐसा  कोई  व्यक्ति  है  जो  बार-बार  आपको  अपना  दुखड़ा  सुनाता  है,  तो उसे  इग्नोर मत  कीजिए।  उसको  आप  की  आवश्यकता  है।  यदि  आप  कुछ  भी    कर  पाए  तब  भी  उसको  यह आश्वासन  दीजिए  कि  आप  उसके  साथ  हैं।  आपका  एक  वाक्य  कि,  'मैं  तुम्हारे  साथ  हूं'  शायद  किसी को  भी  इस  तरह  जीवन  छोड़ने  से  बचा  ले।    वक्त  के  साथ  उसकी  प्रॉब्लम  भी  सॉल्व  हो  जाए।  और अनजाने  में  ही  सही  शायद  आप  किसी  का  जीवन  बचा  ले।  और  हमें  यह  कहने  की  आवश्यकता  ही ना  पड़े  "यार  एक  बार  तो  मुझे  कहता।"

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