एक दिन आदमी जंगल से गुजर रहा था। तब उसने देखा की एक लोमड़ी बड़ी ही बुरी हालत वहा पे पड़ा था।वो चल फिर भी नहीं सकता था। उसको बड़ी ही दया आई, वह सोच ही रहा था की इस हालत में ये बिचारा खाना कैसे खाएगा , की तभी वह पे एक शेर शिकार कर के आया और जब शेर खाके लोमड़ी के लिए शिकार छोड़ के चला गया। बाकि बचा हुआ बचा हुआ लोमड़ी खाया। वो आदमी समज गया।
वह दूसरे दिन आया. दूसरे शेर लोमड़ी के लिए शिकार छोड़ के चला गया। इस प्रसंग से उस आदमी ने ये प्रेरणा ली की जब हज़ार हाथ वाला बैठा है तो हमें चिंता करने की क्या आवश्यकता है?
वह घर पे गया और बिना कुछ काम काज किये वह एक कोने में बेथ गया। इस आशा से की भगवान खाना भेजेंगे। किन्तु ऐसा हुआ नहीं और कुछ दिन में वो हाड़पिंजर बन गया। तब गुस्से में उसने भगवन से शिकायत की कि, " तूने उस लोमड़ी खाना भेजा जब की वो लोमड़ी न तुम्हे जानती है और न ही तुम्हारे पूजा करती है। और मैं तुम पे इतना विश्वास करता हु भरोसे मैंने अपना सारा काम काज छोड़ दिया फिरभी भूखा मार रहे हो?"
तभी एक आवज आई की, "यही पे तेरी भूल है। तुमने लोमड़ी को देखा शेर को नहीं देखा।मैने उस लोमड़ी को इसलिए क्योकि वो अशक्त थी। मैं उन लोगो की मदद करता हु जो अशक्त है और कोई कारण वश महेनत नहीं कर पाते अथवा महेनत करने के पच्छायात भी अपने कर्म के कारन उनको लाभ नहीं मिलता। किन्तु उनकी मैं कभी मदद नहीं करता जो ठीक ठाक है किन्तु उनके पास इसलिए कुछ नहीं है क्योकि वो कुछ करना नहीं चाहते। वो भगवान के भरोसे बैठे रहते है।"
दोस्तों, हमारा प्रॉब्लम ही यही है की हम हमेसाह लोमड़ी को ही देखते है शेर को नहीं। अर्थात हम कभी उनके जैसे बनने का प्रयास नहीं करते जो दुसरो की मदद करते हो करते हो। हम हमेंशा लोमड़ी को ही देखते है और हम ये आशा करते है की हमें भी बैठे बिठाये ही सब कुछ मिल जाये। कोई आके हमारे सारे प्रॉब्लम दूर कर दे और इसी आशा में हम अपना सारा जीवन बिता देते है। और जब इसा नहीं होता तो हम भगवन को कोसते है। याद रखे भगवान भी उनकी ही सहायता है जो खुद की सहायता करता हो। ना की उनकी जो बिना महेनत करे सबकुछ पाना चाहता हो।
इसलिए महेनत करे भगवान पे विश्वास करे जब आपको आवश्यकता होगी तब वो 'शेर' जरूर भेजेगा। किन्तु कभी यदि मौका मिले तो आप भी किसी के जीवन में 'शेर' बन के जाये। हमेशा 'लोमड़ी' ही न रहे।
Very nice!
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