भगवान कृष्ण का पूरा जीवन मैनेजमेंट के नजरिए से आदर्श है। श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व से जुड़ी ज्यादातर चीजें, जो उनके जीवन का प्रमुख हिस्सा रहीं, वे सब उन्हें उपहार में मिली थीं। इन सभी चीजों के बारें में भागवत, पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, गर्ग संहिता जैसे ग्रंथों में बताया गया है। अलग-अलग ग्रंथों में इन चीजों के संबंध अलग-अलग तरीके से उल्लेख किया गया है।
जैसे, नंदबाबा से बांसुरी, राधा से मोरपंख। ये चीजें श्रीकृष्ण की पहचान हैं। ये बताती हैं कि इंसान को जहां से भी कुछ अच्छा मिल सके उसे अपने जीवन में उतारना चाहिए। दूसरों की अच्छी आदतों को सीखना, ज्ञान लेना और अपनों से मिली चीजों को सम्मान देना चाहिए।
बांसुरी
श्रीकृष्ण को उनके जीवन में कई उपहार मिले थे और अधिकतर उपहार हमेशा उनके साथ ही रहे। नंद बाबा ने बालकृष्ण को बांसुरी दी थी। बचपन का ये उपहार उन्होंने हमेशा अपने साथ ही रखा।
जीवन प्रबंधन- बांसुरी अंदर से खोखली होती है, लेकिन अपनी मीठी आवाज से दूसरों के मन मोह लेती है। बांसुरी की सीख यह है कि हमें अपने आचरण को अहंकार, लालच, क्रोध जैसी बुराइयों से खाली रखना चाहिए और सभी मीठा बोलना चाहिए।
वैजयंती माला और मोरपंख
जब श्रीकृष्ण थोड़े बड़े हुए तो रासलीला करते समय राधा ने भगवान को वैजयंती माला और मोरपंख भेंट किया। श्रीकृष्ण ये माला अपने गले में और मोरपंख मुकुट में धारण करते हैं।
जीवन प्रबंधन - वैजयंती माला का अर्थ है कि विजय दिलाने वाली माला। इसका संदेश ये है कि हमें हर परिस्थिति में सकारात्मक रहना चाहिए, तभी सफलता और जीत मिलती है। मोरपंख प्रकृति के प्रति सम्मान प्रकट करने का सीख देता है। सभी जीवों के प्रति प्रेम बनाए रखना चाहिए।
शंख और धनुष
श्रीकृष्ण शिक्षा ग्रहण करने के लिए सांदीपनि के आश्रम उज्जैन आए थे। उस समय शंखासुर नामक दैत्य ने गुरु के पुत्र को बंदी बना लिया था। श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को दैत्य से मुक्त कराया। शंखासुर से उन्हें शंख मिला था। जिसे पांचजन्य के नाम से जाना जाता है। गुरु सांदीपनि ने अजितंजय नाम का धनुष भेंट किया था।
जीवन प्रबंधन- धनुष इच्छा शक्ति का प्रतीक है। अजितंजय का अर्थ है, जो अजेय हो उसको भी जीतने की क्षमता रखने वाला। इच्छा शक्ति से हम किसी भी असंभव दिखने वाले काम को भी कर सकते हैं। पांचजन्य का अर्थ है पांच लोगों का हित करने वाला। हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए तो जो धर्म के अनुसार कर्म करते हैं।
सुदर्शन चक्र
शिक्षा ग्रहण करने के बाद श्रीकृष्ण की भेंट विष्णुजी के अवतार परशुराम से हुई थी। परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र भेंट किया था। इसके बाद ये चक्र हमेशा श्रीकृष्ण के साथ रहा। सुदर्शन चक्र शिवजी ने त्रिपुरासुर का वध करने के लिए निर्मित किया था। बाद में शिवजी ने सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को दे दिया था।
जीवन प्रबंधन- सुदर्शन का अर्थ है सुंदर दिखने वाला। इस चक्र से श्रीकृष्ण ने कई दैत्यों का वध किया था, बुराइयां खत्म की थीं। व्यक्ति को अपना व्यक्तित्व सुंदर बनाए रखना चाहिए। बुराइयों से दूर रहेंगे, तभी हमारा व्यक्तित्व सुंदर बन सकता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box.