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vastav me sukhi kon?


एक भिखारी किसी किसान के यहाँ भीख मांगने गया।  किसान की स्त्री घर में थी, उसने चने की रोटी बना रखी थी उसी वक्त किसान घर आया और उसकी स्त्री ने उसके हाथ पेर धुलवाए और उसको खाना परोसा।  उस स्त्री ने एक मुठी चना भिखारी को दिए और वह चना ले के चला गया. रस्ते में भिखारी ने सोचा की, 'हमारा भी कोई जीवन है दिन भर कुत्तो की तरह मानगो और घर जाके खुद बना के खाओ।  वह सोच ने लगा की उस  किसान को देखो कितना सुन्दर घर है, घर में स्त्री है, बच्चे है खुद अनाज उगता है. बीवी बच्चो के साथ मिलके खता है. वास्तव में तो सुखी वो किसान ही है। '
उधर वह किसान अपने पत्नी से कह रहा था की, 'हमारा बैल बहुत बूढ़ा हो गया है, अब वह किसी तरह काम नहीं देता, यदि कही से कुछ पैसो का इंतजाम हो जाये तो इस साल का काम चल जाये।  कल महाजन के पास जाउगा और कुछ पैसे उधर मांग लूंगा।' दूसरे दीन वह महाजन के पास गया और बहुत बिनती की, हाथ पेअर जोड़ने के बाद कुछ पैसे किसान को दिए।' रुपये ले के किसान अपने घर पे जा रहा था तब वो सोचने लगा की, 'हमारी  भी कोई जिंदगी है? पांच रुपये भी घर पे नहीं है। उस महाजन के पास सेकड़ो रूपए है।  सुखी तो वो महाजन है।' महाजन के पास छोटी सी कपडे की दुकान थी, वो बड़ी दुकान से कपडा ले के बेचता था। दूसरे दिन वो बड़ी दुकान में कपडा खरीद ने गया। वह वहा बैठा हे था की इतनी देर में कई तार आये। कोई मुंबई से था तो कोई कोलकाता से। किसे में १ लाख का मुनाफा था तो किसे में २-३ लाख का मुनाफा था। महाजन ये सब देखता रहा। जब वो जा रहा था तब  रस्ते में वह सोचे लगा की, 'हम भी कोई आदमी है? सौ दोसो जुड़ गए तो महाजन कहलाने लगे। उस सेठ को देखो एक ही दिन में लाखो का फायदा असल में सुखी तो वो है।'  उधर शेठ बैठे ही थे की तार आया जिसमे ५ लाख का नुकसान था। वह बड़ी चिंता थी की नौकर ने कहा, 'आज लाट साहब की रायबहादुर सेठ के यहाँ दावत है। आपको जाना है, मोटर तैयार है। सेठजी रायबहादुर की दावत में गए। वहा सोने चाँदी की कुर्सियां थी। कलेक्टर-कमिश्नर और बड़े बड़े लोग आये थे। वहा सेठ को कौन पूछता? सेठजी  एक कुर्सी में बेथ गए। लाट साहब आये रायबहादुर के साथ  चाय पानी पी के चले गए। सेठजी जाते समय रस्ते में सोचने लगे के, 'हम भी कोई सेठ है? पांच लाख के में ही घबड़ा गए? रायबहादुर का कैसा ठाठ है, लाट साहब उनसे हाथ मिलते है। सच में सुखी तो वही है।' उधर लाट साहब के जाने के बाद रायबहादुर के सर में दर्द हो गया। डॉक्टरों के फौज हाजिर हो गई। घाटे के कई तार भी आ गए। कारोबार की भी चिंता थी के तभी उन्हों ने खिड़की से जाक के देखा तो एक भिकारी हाथ में एक डंडा लिए अपने मस्ती में जा रहा था। उसको देख रायबहादुर बोले, 'वास्तव में सुखी तो यही है। उसे ना ही घाटे की चिंता और नहीं मुनाफे की। लाट साहब को पार्टी भी नहीं देनी पड़ती।'

इस कहानी से हमे ये सिख मिलती है की हम  एक दूसरे को ही सुखी मानते है। वास्तवमे सुखी कोण है? ये वोही जान सकता है जिसके मन में शांति हो। सच्चा सुखी वोही है जिसे आतंरिक सुकून हो।  चाहे आप भिखारी हो या अमिर इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर आपके मन में शांति नहीं तो आप सुखी नहीं।  इसलिए जीवन में कभी धन के पीछे मत भागना, किन्तु ठहर के अपने अंदर देखना उस शांति की तलाश ना, यदि आपको वो शांति मिल गई तो विश्वास कीजिए आप किसी भी पैसे वाले से ज्यादा सुखी हो। और उस धन कोपने के बाद आपको कोई और धन की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी।  
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