एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना पड़ा और किसी कारणवश किसीको गवाह के रूपमे लेके जाना था।
अब वह व्यक्ति सबसे पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसके साथ में रहता था। उससे कहा की, 'हे मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में मेरा गवाह बन चल सकते हो?' तो उस मित्र ने का, ' क्षमा करना मित्र किन्तु आज मुझे बहोत सारा काम है, एक क्षण की भी फुर्सद नहीं है। अन्यथा में अवश्य ही तुम्हारे साथ आता।'
उस व्यक्ति ने सोच की यह मित्र हमेशा मेंरा साथ देता था। आज जब मुझे उसकी सबसे ज्यादा आवश्कता है तभी वो मेरा साथ नहीं दे रहा तो दूसरे मेरा क्या साथ देंगे? फिरभी हिमंत कर के वह अपने दूसरे मित्र के पास गया जो उससे रोज सुबह शाम मिलता था। और अपनी समस्या सुनाई। दूसरे मित्रने कहा की, 'में तुम्हारे साथआऊंगा किन्तु अदालत के दरवाजे तक ही आऊंगा। अंदर तक नहीं आऊंगा। वह व्यक्ति बोलै की, बाहर तक तो में ही काफी हु मुझे अंदर के लिए गवाह चाहिए इस लिए तुम्हे अंदर तक आना पड़ेगा।
फिर वह व्यक्ति थक हार के तीसरे मित्र के पास गया जो उसे बहुत दिनों कभी-कभी ही मिलता था, और समस्या सुनाई। तीसरे मित्र ने उसकी समस्या सुनके तुरंत ही उसके साथ चल दिया।
इस कहानी का सार दो रूप से हम ले सकते है पहला आध्यात्मिक और लौकिक।
१ आध्यात्मिक सार : जैसे इस वयक्ति के तीन दोस्त है वैसे ही हरेक व्यक्ति के तीन दोस्त है। सबसे पहला मित्र है हमारा 'शरीर' . हम जहा भी जाएंगे हमारा शरीर रूपी मित्र हमारे साथ ही रहता है। एक क्षण, एक पल भी हम से दूर नहीं रहता। दूसरा मित्र है इस शरीर के सगे सम्बन्धी जैसे माँ बाप, भाई बहन, चाचा, मामा वगेरा। जो सुबह दोपहे और शाम को हमारे साथ रहते है। और तीसरा मित्र है हमारे कर्म।
जब हम ये शरीर छोड़ देते है यानि जब हमारे मृत्यु हो जाती है तब ये शरीर रूपी हमारे पहला मित्र हमरे साथ एक कदम तक नहीं चलता। ऐसे ही हमारा दूसरा मित्र याने हमारे सगे सम्बन्धी केवल समसान तक ही हमारे साथ चलते है। और हमारा तीसरा मित्र जो हमारे साथ आता है वो है हमारे कर्म। हमारे कर्म ही हमारे साथ आते है एक सच्चे मित्र की तरह। इसलिए हमें सावधानी पूर्वक हमारे कर्म करने चाहिए। हम करते है उल्टा हम अपने शरीर और अपने सम्बन्धी के लिए अपने कर्म तक की भी परवाह नहीं करते। जो हमारा सही में सच्चा मित्र है। और जो वही हमारे बुरे वक्त में हमारा साथ देगा।
२. लैकिक सार : लैकिक दृस्टि से देखे तो हम में से ज्यादा तर लोग, और खास कर के जो सफल है वो लोग ऐसे व्यक्ति से ही जुड़े होते है जो केवल हमारे सुख में ही हमारा साथ देते है। क्योकि उनके लिए हमारे फ़ायदे से ज्यादा उनका फायदा मायने रखता है। और इसलिए वो हमारे हर बात में हां में हां मिलते है, हमारे तारीफ करते नहीं थकते। हमे ये अहसास दिलाते है की इनसे ज्यादा हमारा कोई सुभेच्छक हो ही नहीं सकता और उनको ही हम अपना सर्वस्व मानने लगते है,और इस वजह से हमें लगता है के वो हमारे सच्चे मित्र है। किन्तु हमें तब पता चलता जब हमारा बुरा समय आये और तब तक बहुत ही देर हो चुकी होती है। और ऐसा मित्र जो हमारे गलती हमें बताये उस से हम दूर हो जाते है। इसलिए अपने जीवन में ऐसे लोगो से बचे जो आपकी चापलूसी करे। क्योकि वो लोग आपको बर्बाद कर के ही छोड़ेंगे। इसलिए ऐसे लोगो से दूर रहिये फिर चाहे वो आपका परिवार का सदस्य करीबी ही क्यों न हो,और ऐसा मित्र ढूंढिए जो आपकी गलती बताये, क्योकि उसीको आपकी सच्ची परवाह होती है। इसीलिए वो आपकी गलती बता रहा है ताकि आगे चलके आपको तकलीफ न हो। वही आपके बुरे समय में आपके काम आएगा। और वो ही आपका सच्चा हितेषी होगा।
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