आज कल न्यूज़ चॅनेल में एक फेमस एक्टर के सुसाइड या मर्डर के जो न्यूज़ आ रहे है उसको देख के एक विचार आया की, ऐसे जैसे लोगो के पास क्या कमी थी? जो उनको ऐसा काम करने पड़ रहा है? (मैं ये बिलकुल नहीं मानती की 'वह' एक दोषी है वो जांच का विषय है और यहाँ 'वह' एक मात्रा उदहारण है जो बात मैं कहने जा रही हु उसको समज ने के लिए) अच्छे पॉश एरिया में घर है, बड़ी कार है। वो हर एक वस्तु है जो एक आम आदमी सोच भी नहीं सकता। फिर भी लोग गलत काम क्यों करते है? तभी मुझे एक कहानी याद आयी और मुझे जवाब मिल आया। वो कहानी कुछ इस प्रकार है।
प्रचलित लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक विद्वान संत के आश्रम में एक नया शिष्य आया। वह अपने जीवन में बहुत दुखी था, इस वजह से उसने संन्यास धारण करने का निश्चय किया। संत ने उसकी बात समझी और कहा कि तुम अब यहीं रहो और आश्रम में गाय की देखभाल करो, सुबह-शाम दूध का सेवन करो। गायत्री मंत्र का जाप करो।
संत की बात सुनकर नया शिष्य खुश हो गया, क्योंकि उसे सुबह-शाम ताजा दूध मिलेगा। व्यक्ति ने गाय की देखभाल शुरू कर दी, कुछ ही दिनों में वह तंदुरुस्त हो गया। उसने संत से कहा कि गुरुदेव अब बहुत आनंद है। मैं गाय की देखभाल करता हूं, दूध का सेवन करता हूं। अब मैं खुश हूं। गुरु ने कहा कि अच्छी बात है।
कुछ दिन ऐसा ही चलता रहा। इसके बाद एक दिन गाय आश्रम से कहीं चली गई। बहुत खोजने के बाद भी शिष्य को गाय नहीं मिली। गाय न मिलने की वजह से वह शिष्य बहुत दुखी था। उसने अपने गुरु को इस बात की जानकारी दी। गुरु ने कहा कि ये भी अच्छी बात है। ये बात सुनकर शिष्य हैरान था, लेकिन वह कुछ बोला नहीं।
शिष्य आश्रम के अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया। इसी तरह थोड़ा समय व्यतीत हो गया। एक दिन वह गाय फिर से मिल गई। शिष्य खुश हो गया। उसने गुरु से कहा कि गाय मिल गई है। गुरु ने कहा है कि ये भी अच्छी बात है। शिष्य ये सुनकर हैरान था। उसने गुरु से पूछा कि गुरुदेव जब मैंने आपको बताया था कि गाय के दूध सेवन से मैं आनंद में हूं, तब आपने कहा था ठीक है। जब गाय गुम हो गई, तब भी आपने कहा था कि ये भी अच्छी बात है और जब गाय मिल गई है, तब भी आप यही कह रहे हैं कि ये भी अच्छी बात है।
गुरु ने शिष्य से कहा कि यही सुखी जीवन का मूलमंत्र है। हमारे जीवन में जैसी परिस्थितियां चल रही हैं, हमें उन्हें समझना चाहिए। परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेना चाहिए। इस बात का ध्यान रखने पर ही हमें संतुष्टि मिल सकती है।
संतुष्टि का अर्थ ये नहीं की बिना महेनत किये कुछभी मत करो और बैठ जाओ। बिना महेनत किये मंज़िल को पाना मुश्किल है। सिर्फ मन में चाहत के बीज बोये सफलता के वृक्ष नहीं उगते। इसलिए सपने को साकार करने के लिए महेनत करो। मगर मन चाही सफलता न मिलने पर जो मिला है उसीमे संतुष्टि मन के आगे बढ़ने में ही समझदारी है।दोस्तों, जीवन में सुख और शांति का आभास होना अनिवार्य है, और इसलिए संतुष्टि का गुण अपनाना जरुरी है।
यदि आप जीवन में सफल होना चाहते है तो महेनत के साथ साथ संतुष्टि भी आवश्यक है। अब आप ये कहेंगे की भाई ये तो दोनों विरोधाभास है। यदि संतुष्टि करली तो आगे कैसे प्रगति करेंगे? क्योकि संतुष्टि का अर्थ तो यही है की अब आपको कुछ भी नहीं चाहिए। नहीं, ये सही नहीं है संतुष्टि का अर्थ होता है की अभी जो आपके पास है उससे आप खुश रहो। और जो आप जीवन में पाना चाहते हो उसके लिए महेनत करो, किन्तु यदि मन चाहा परिणाम न मिले तो हताश या निराश न हो कर जो है उसमे खुश रहकर आगे का कार्य करो। इससे आपको ये लाभ होगा की आपका मन प्रसन्न रहेगा, और प्रसन्न मन से किया हुआ कोई भी कार्य सफलता की और अग्रसर होगा।
सोचिये, यदि आपने कुछ पाने के लिए महेनत की और आपको मनचाही सफलता न मिली तो क्या होता है ? हम डिप्रेसन में चले जाते है और उसके बाद सफलता तो छोड़िये किन्तु हम सामान्य सा कार्य भी ठीक से नहीं कर है। और उससे हमारेान में सफलता प्रोफेशनल एंड पर्सनल दोनों लाइफ में बहुत ही गहरा असर पड़ता है।
उसकी जगह पे यदि हम उस situation को स्वीकार कर के यानि जो मिला है उसमे संतुष्टि माने तो हम खुश रहकर अपने आगे continue कर सकते है। और सफलता पा सकते है।
याद रखिये संतुष्टि का अर्थ जो है उसको लेकर बैठ जाना नहीं होता, बल्कि जो महेनत कर के जो मिला है उसमे खुश होकर आगे बढ़ाना होता है।
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