How to Become Good Parents ?
बिना किसी क्लासिस के, बिना कोई टिप्स के, बिना कोई प्लानिंग उन्होंने हमें जिस तरह बड़ा किया वो हमारे लिए आश्चर्य की बात है। इसका एक reason ये था की उस समय joint family हुआ करती थी, इसलिए बच्चे कोई अनुभवी (दादी,नानी) हाथो से ही बड़े होते थे। तो वो ही परंपरागत तरीके से बच्चो की परवरिश हुआ करती थी। जैसे हमारे माँ -बाप की हुए ऐसी ही परवरिश हमारी भी हुई।
लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज ज़माना काफी बदल गया है। आज हम काफी advance हो चुके है। आज हम हर एक चीज़ की एक प्लानिंग करते हैं। खास कर के जब हम बच्चे की सोचे, क्योकि हम चाहते है की हम अपने बच्चो की अच्छे से अच्छी परवरिश करे। इस के लिए हम हर एक संभव कोशिश करते है। डिलिवरी से लेकर उसकी शादी तक की प्लानिंग हम कर लेते हैं। उसके बाद ही बच्चे के बारे में सोचते है।
दोस्तों, इतनी केयर करने के बाद इतनी प्लानिंग करने के बाद भी आज की generation की परवरिश पर प्रश्न लगते है। आज बच्चा जिद्दी,घमंडी,बड़ो की अवज्ञा करने वाला और ऐसी ही कई और शिकायते आज की जनरेशन की हम करते है। ऐसा क्यों?
बिना planning किये हमारे parents ने जो हमें values (संस्कार) दिए वो हम अपने बच्चो को इतनी प्लानिंग के बाद भी क्यों नहीं दे पाए? कौन सी कमी रह गई या क्या चीज़ छूट रही है हमसे?
दोस्तों मेरे हिसाब से हम सब कुछ planning तो करते है एक अच्छे माँ बाप बनने के लिए, बच्चो को एक अच्छी लाइफ देने के लिए मगर मेरे हिसाब से कुछ छोटे छोटे के पॉइंट्स है जो हम से छूट रहे है। अगर हम उन पर भी फोकस करे तो शायद नयी पीढ़ी से हमारी शिकायते कम हो सकते है।
दोस्तों, points छोटे है महत्व पूर्ण है जो एक ब्लॉग में संभव नहीं इसलिए मै एक ब्लॉग में एक पॉइंट कहूँगी, ताकि मुझे जो कहनी है वो मै ठीक से आप लोगो तक पहोंचा सकू। इसलिए मैं पेरेंटिंग टिप्स के पार्ट बना रही हु।
सच्चा प्यार दे, हर मांगी हुए चीज़ नहीं /बच्चो की हर ज़िद पूरी ना करे।
दोस्तों, आज की एक मान्यता हो गई है की एक बच्चे की अच्छी परवरिश का मतलब है की जो भी बच्चा मांगे उसको तुरंत ही ला कर दो। हमारे बच्चे के पास सारी चीज़े होनी चाहिए। branded, expensive और जो किसी के पास न हो वो हमारे बच्चे के पास होना चाहिए। जो ऐसा करते हो वो ही अच्छे parents कहलाते है। वो ही बच्चो को सच्चा प्यार करते है।
ये मान्यता आज हर किसी की हो गई है। आज जैसे की एक होड़ सी लगी है। बच्चा आने से पहले ही shopping स्टार्ट होती है। सबसे बेस्ट और सब से महंगी हमारी चीज़े होनी चाहिए, ये सब को हम प्राइस के साथ दिखते है, social media पर शेयर करते है , और अच्छे parents का certificate लेते हुए हमारे अहम् को एक आनंद मिलता है।
उनको वो सबकुछ दिलाने के चक्कर में और अपने आप को अच्छा पेरेंट्स कहलाने के चक्कर में दोनों ही माता और पिता काम पर जाते है बच्चो को अकेला छोड़कर। क्योकि आज कल nuclear family हो गई है।वो बच्चा अपने दादा दादी या नाना नानी के हाथो की बजाय एक ऐसी व्यक्ति के हाथो में पलता है जो उसको जानते तक नहीं। जो उसका कुछ भी नहीं होता या होती।
वो बच्चे को केवल इसलिए संभाल रही है ताकि उसको कुछ पैसा मिले। क्या ऐसे इंसान के हाथो में पला हुआ बच्चा कोई जीवन के एथिक्स सिख पायेगा? क्या सही हैं या गलत वो जान पायेगा? और हैरानी तो तब होती है की केवल २ ३ महीने के बच्चे को नैनी के हवाले किया जाता है। वो छोटा सा २ ३ महीने का बच्चा जिसको सबसे ज्यादा ज़रूरत अपनी माता की होती है, वो उसको इसलिए अकेला छोड़ कर जाती है क्योकि वो अपने बच्चे को सारि खुशिया दे पाए।
२ ३ महीने या ५ साल तक के बच्चे को खिलोने नहीं हमारा प्यार चाहिए। हमारी गोद चाहिए। मगर उस समय हम उनको छोड़ कर चले जाते है उनका फ्यूचर बनाने के लिए। बच्चे अपराधियों के आसान शिकार होते है। और ऐसे बच्चे जो घर में अकेले रहते है वो कई बार अपराध का शिकार बनते है, और हम उनका फ्यूचर secure कर ने के चक्क्र में उनका वर्तमान ही बिगाड़ देते है।
माता पिता के प्रति बच्चो का attachment बचपन से ही हो जाता है। जब आप उसकी केयर करो, उसको प्यार करो तो बच्चा भी आपको प्यार करेगा। उसके साथ खेलो तो वो आपको पहचानेगा। scientifically ये prove हुआ है की अगर हम बच्चो को साइन से लगाते है तो उसका confidence बढ़ता है। वो बच्चा mentally strong होता है। मगर आज हमारे पास बच्चो को देने के लिए सारी खरीदी हुई चीज़े है मगर समय ही नहीं है।
मैंने एक successful महिला का एक interview देखा। उसमे उसने बताया की जब उसका बच्चा २ ३ महीने का था तब उसको कुछ problem हुए और वो hospital में admit हुआ, तब उनके पास पैसे नहीं थे उसका अच्छे से इलाज करनेका। तब उसने कसम खाई की मैं अपने हालत को सुधारूँगी। आज मेरा बच्चा जो चीज़ पर हाथ रखता है वो चीज़ उसकी हो जाती है। ये कहकर उसने नैनी के हाथो में से अपने बच्चे को ले कर प्यार करने की कोशिश करती है। वो ३-४ साल का बच्चा तुरंत उसका हाथ छुड़ा कर नैनी के पास चला जाता है।
जरा सोचिये ऐसे बच्चे का कभी अपने पेरेंट्स के प्रति attachment रहेगा? कभी नहीं, और यही वजह है जो आज वृद्धाश्रम में खाली जगह नहीं है। उसका दोष हम बच्चो को देते है। हम रो रो कर दुसरो को हमने अपने बच्चे के लिए क्या किया वो कहते है। मगर उसका जवाबदार उसका बचपन होता है। जब बच्चो को हमारी ज़रुरत थी तब हम नहीं थे ,आज हमें जरुरत है तो वो नहीं ये उनको हमने ही शिखाया है, हैं ना?
दोस्तों, खुशिया खरीदी नहीं जाती। वो पायी जाती है। ये सारी बातें हम जानते है और इस बात का हमें gilt भी होता है। कई बार हमारे इस gilt में से बहार आने के लिए हम बच्चो को वो सारी चीज़े दे देते है जो वो मांगता है। बच्चे का वही से बिगड़ने की प्रक्रिया शुरू होती है।
हमने कई बच्चो को शॉपिंग मॉल में या पब्लिक प्लेस पर ज़िद्द करते हुए देखा है। ऐसे बच्चो को कन्ट्राल करना उनके parents के लिए बहोत ही मुश्किल होता है। वो इसलिए क्योकि उन्हों ने 'ना' ही नहीं सुनी है। उनके mind में यही है की वे जिस चीज़ पर वे हाथ रखे वे उन्ही की होनी चाहिए, वो उनके लिए ही बनी है। जब ऐसे बच्चो को 'ना' कहते है तो उनका दिमाग विद्रोह कर देता है। क्योकि उनके दिमाग को 'ना' का कमांड पता ही नहीं।
ऐसे बच्चे जब बड़े होते है तब भी उनकी मानसिकता यही रहती है। उनको ना ही महेनत का पता होता है और न ही बचत का। नतीजा ये होता है की जब जीवन की परीक्षा ये आती है तब ऐसे बच्चे अक्सर फ़ैल हो जाते है, क्योकि उन्होंने संघर्ष करना सीखा ही नहीं। उनको पता ही नहीं की महेनत क्या है। उनको केवल यही पता है की जो हम चाहे वो चीज़ बिना महेनत और संघर्ष के मिल जाती है।
दोस्तों, हमने इसीलिए अक्सर बड़े सफल लोगो के बच्चो को अपनी लाइफ में असफल होते हुए देखा है। क्योकि उनको पता ही नहीं की चाहे वो चीज़े हो या success वो महेनत और संघर्ष से मिलती है केवल चाहने से नहीं।
जब उनको बहार की दुनिया में उनके चाहने की चीज़ नहीं मिलती तो वो ज़िद करते है, मगर बहार उनकी ज़िद नहीं चलती और धीरे धीरे वो डिप्रेशन का शिकार होते है। क्योकि उनको पता ही नहीं है की यदि ज़िद करने के बाद भी कुछ ना मिले तो क्या करना चाहिए? महेनत या बिना किसी चीज़ के चलाना उन्होंने सीखा ही नहीं।
बच्चो को कैसे समजाये ?
दोस्तों, मै ये नहीं कहती की बच्चो को कुछ भी ना दो। कुछ लोग बच्चो को basic जरूरियात भी पूरी नहीं करते करोडो होने के बाद भी, ये भी गलत है। बच्चे की कुछ ज़िद ज़रूर पूरी करे, पर हर ज़िद नहीं। उसको सब कुछ देने के चक्कर में जो उसको सबसे ज्यादा जरुरी है माता और पिता का प्यार उससे वंचित न रखो। बच्चो को 'ना' सुनने की आदत डलवाये। उसको ये भी सिखाये की जीवन में कुछ चीज़ो के बिना भी जिया जाता है।
उसका जन्म दिन अनाथ बच्चो के साथ मनाये। ऐसा करने से उसको देने की आदत भी पड़ेगी और parents की value भी पता होगी। उसको कहिये की हम कैसे संघर्ष कर के पैसे कमा रहे है। उसको जितनी ज़रूरत है उससे कम pocket money दीजिये। ताकि वो money management सिख पाए।
जो पॉकेट मनी दे उसका पाई पाई का हिसाब ले, ताकि हमें ये पता लगे की कही वो कोई बुरी संगत में तो नहीं फ़सा है। उसके हर सपने को पूरा करने की बजाय बच्चो को सिखाये की सपने कैसे पुरे किये जाते है। बच्चो से बाते करे। उनको हमेशा ये अनुभव कराये की हम उनके साथ है।
याद रहे parents बनना दुनिया का सबसे सुखद अनुभव है। इसको हमारे ego satisfaction या gilt को छुपने के चक्कर में न खोये। जॉब जरूर करे मगर ये सुनिश्चित करे की हमारा बच्चा एक सुरक्षित हाथो में है। हर ज़िद पूरी करना प्यार नहीं, बल्कि उसके भविष्य खिलवाड़ है इस बात को समजना होगा।
ये छोटी छोटी चीजे है जिसके ऊपर यदि हम फोकस करे तो हमारा और हमारे बच्चो का वर्तमान और भविष्य दोनों ही सुनहरा हो सकता है।
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