किसी की जिंदगी से बड़ी है इज़्ज़त ?/ LIFE OR HONOUR
दोस्तों, आज एक घटना SOCIAL MEDIA पर देखि। उस में एक सामाजिक संस्था को एक INFORMETION मिली की, एक घरे में एक लड़की को कई महीनो से बंधक बना के रखा गया है। जब संस्था उस लड़की को RESCUE करने पहोची तो, उन लड़की के परिवार ने उनका विरोध किया। उन्होंने बताया की हमने उसको बंधक नहीं बनाया है पर वो लड़की बीमार है। उस संस्था वालो ने कहा की हम उसको HOSPITEL ले कर चलते है। जो भी खर्चा होगा वो हम आपको देंगे, पर परिवार वाले नहीं माने।
संस्था वालों ने उस परिवार के आगे हाथ पैर जोड़े की आप या तो उसे हॉस्पिटल ले जाए या हमें ले जाने दे। क्योंकि जब वो संस्था वाले वहा पहुंचे तो उन्होंने देखा की उस लड़की को निचे जमीं पे लेटाया है। उस लड़की के ऊपर केवल एक चादर ओढ़ाई थी। पहली नज़र में देख ने पे ये लगा की वो मर चुकी है पर उसके श्वास चल रहे थे।
इसलिए वो संस्था उस लड़की को बिना देर किये हॉस्पिटल पहोचना चाहता था। पर वो परिवार को बिलकुल भी जल्दी नहीं थी। वो संस्था उस परिवार को हाथ पैर जोड़ रही थी, पर परिवार वाले उस लड़की को ले जाने नहीं दे रहे थे। वो संस्था भी उसको लिए बिना जाने को तैयार नहीं थी।
आखिर दो तीन घंटे तक की खींचतान के बाद पुलिस की दखलगिरि से उस संस्था की विजय हुई। परिवार वाले उस लड़की को हॉस्पिटल ले जाने के लिए राज़ी हुए और वो लड़की हॉस्पिटल पहुंची।
आप को ये पढ़ कर लगता होगा की ये किस्सा किसी दूर एक बीहड़ गांव का होगा। वो लड़की और उसका परिवार बिलकुल ही देहाती और अनपढ़ होंगे। ,मैं आपको बतादूँ की, वो लोग एक बड़े शहर में पॉश एरिया में रहते थे। वो लड़की ने भी C.A. तक की पढाई की हुई थी।
ये पूरा FACEBOOK पे लाइव आ रहा था। जब मैं वो देख रही थी तब वो परिवार बार बार ये कह रहा था की, आप ने हमारी समाज में इज़्ज़त ख़राब की। जब उस लड़की को हॉस्पिटल लेजाने के बाद उस परिवार से पूछा गया की आप क्यों उसको HOSPITAL नहीं ले गए। तब उस परिवार का एक ही जवाब था की, अगर लोगो को पता चलता तो हमारी समाज में इज़्ज़त नहीं रहती।
उस लड़की के साथ क्या हुआ था ये मैं नहीं जानती। ना ही जानना चाहूंगी। पर मेरे मन मए एक ही सवाल है की क्या किसी की जान से बढ़कर हमारी समाज में इज़्ज़त होती है?
ऐसा नहीं था की वो परिवार उस लड़की को प्यार नहीं करता होगा। क्योकि यदि ऐसा होता तो वो उसको इतना पढता लिखता नहीं। फिर ऐसी कौन सी हमारे समाज की रचना है, जो हमें अपने कलेजे के टुकड़े से ज्यादा हमारी समाज में इज़्ज़त ज्यादा प्यारी होती है या रखनी पड़ती है ?
कहते है की भगवान हर जगह नहीं जा सकता इसलिए उन्होंने माता-पिता को बनाया। हर एक धर्म में माता-पिता का स्थान सर्वोच्च रखा गया है। उन से बढ़ के कोई नहीं। वो इसलिए क्योकि चाहे कुछ भी हो जाए वो अपने बच्चों का बाल तक बाक़ा नहीं होने देते। कहते है की अपने बच्चो के लिए माता-पिता भगवान से भी लड़ जाते है।
यही दूसरी तरफ ऐसे अनेक किस्से है, जहा पर घर की इज़्ज़त के लिए अपने बच्चो को मारते या मरवाते है। honour killing के मामले हमारे यहाँ सदियों से बनते आए है। उसका शिकार बच्चे ही होते है। तब मन में एक सवाल ये भी उठता है की, जो माँ-बाप अपने बच्चो को एक खरोच आने पर भी विचलित हो जाते है। उनका ह्रदय इतना कठोर कैसे बन जाता है। कैसे वो अपने बच्चो को ऐसे ही मरने के लिए छोड़ देते है ?
सबसे बडा रोग क्या कहेंगे लोग?
कहते है की समाज की रचना इसलिए हुई थी, ताकि मानव सुख और शांति से रह सके। जब जरुरत पड़े तो हम लोग एक दूसरे की मदद कर सके। पर आज हमारा समाज कहा पे आके खड़ा हुआ है? आज इंसान एक दूसरे की मदद करना तो दूर, पर किसी की शांति से अपने आप जीने भी नहीं देता।
हमारा सारा ध्यान हमेंशा दूसरे के घरो पर ही रहता है। कौन आता है, कौन जाता है सारी खबर हमें होती है। ऐसा लगता है की लोग इंतज़ार में हो की कब किसी से कोई भूल या गलती हो। जैसे ही वो होता है सब लोग परिवार पर चढ़ जाते है। क्या अपने क्या पराये, सब लोग उनको ये अहेसास कराने में लग जाते है की उन्होंने मानों भूल नहीं पर अपराध किया हो।
पर तब हम ये बात भूल जाते है की आज उनकी बारी है तो कल हमारी भी होंगी। यदि आज हम उनको HELP करेंगे तभी वो कल हमारे काम में आएंगे। पर ऐसा नहीं होता। हम सब को लगता है की हमारे साथ तो ऐसा हो ही नहीं सकता। जब होता है तो हमें समाज में नहीं आता की क्या किया जाये ? उस समय हम से भी ऐसी गलतिया है जो उस परिवार ने करी।
आज हर समाज में इज़्ज़त के नाम पर, मान-सन्मान के नाम पर, संस्कार के नाम पर केवल शोषण हो रहा है। अपने जिगर के टुकड़े को वो अपने घर में पनाह नहीं दे पाते। एक ही डर के कारण की लोग क्या कहेंगे? उसमे गरीब और मध्यमवर्ग समाज उसका सब से ज़्यादा शिकार बनते है। बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक की विधि केवल और केवल समाज के लोगो को दिखाने के लिए होती है। हर समय एक ही डर होता है की कही गलती न हो जाये।
बड़े बड़े रोग आए। उन सारे रोगो की दवाई मानव ने बनाली। अरे कोरोना जैसा रोग, जो आज से पहले न लोगो ने देखा न सुना, उसकी भी दवाई हमने बनाली। पर समाज निर्माण से ले के अब तक जो रोग है की, ' लोग क्या कहेंगे ?' उसकी दवाई हम नहीं बना पाए।
ये रोग दिन पर दिन और भी ख़तरनाक बनता जा रहा है। वो ऐसे किस्सों से साबित होता है। ये एक ही किस्सा नहीं है। ऐसे तो अनेको किस्से होंगे जो हमारे सामने नहीं आते होंगे । (या हम देखना नहीं चाहते) जो भी हो पर ऐसे किस्से एक red light है हम सब के लिए।
हम एक ऐसा समाज निर्माण करे जहा पर ग़लतिया कर ने पर सजा नहीं पर सहानुभूति मिले। लोगो के ताने नहीं पर मदद मिले। ताकि कोई भी ऐसी बेटी या बेटे को मरने के लिए छोड़ने पर कोई भी माता- पिता विवश न हो जाये।
मैं आपको बता दू की डॉक्टर की रिपोर्ट के मुताबिक उस लड़की को महीनो से खाना नहीं दिया गया था। और कुछ हप्तों से पानी भी नहीं दिया था। उस परिवार के मुताबिक उस लड़की की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। hospital में shift कर ने के बाद वो लड़की की २ दिन में ही मौत हो गयी।
ये मौत हमारे समाज की है। अब की पीढ़ी ये अत्याचार सहने वाली नहीं है। उनकी बगावत हमारे समाज को ही नष्ट कर देगी। यदि ऐसा हुआ तो उसके कई दुष्परिणाम भी आएंगे जिनके जिम्मेदार केवल और केवल हम ही होंगे।
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