best gift for women
अभी अभी women's day गया। कई हफ्तों पहले women's डे के लिए तरह तरह की offers शुरू थी। पूरी दुनिया में news room से लेकर social media तक women's day की धूम मच रही थी। ऐसा लगता था की औरतो की लोग कितनी इज़्ज़त करते हैं ? उस दिन whats app, Facebook, twitter में भी दुनिया की बड़ी बड़ी हस्तियों ने सभी महिलाओ को wish किया। उनके अधिकारों की बात करि। उनके काम को सराहा। उस दिन ऐसा लग रहा था की औरतो के साथ सभी खड़े है। लोग कितना सन्मान करते है महिलाओ का ? हमारा समाज कितना सजग है औरतो के अधिकारों के प्रति ?
देवी, दुर्गा, घर की रीढ़ की हड्डी और पता नहीं क्या क्या शब्दों से औरतो को नवाजा गया था। सच में उस दिन एक औरत होने पर गर्व होता था। ये सारे मैसेज पढ़कर ख़ुशी होती थी की, हम औरतो के लिए लोगो के दिल में कितनी इज़्ज़त है ? तभी मेरी नज़र एक और न्यूज़ पर पड़ी और मेरी साडी ख़ुशी, सारा गर्व एक पल में ही गुम हो गया। वो न्यूज़ थी आयशा आरिफ खान की। जिसने शादी के महज दो साल में खुदखुशी कर ली।
यहाँ पर हम उस की स्टोरी की बात बिलकुल ही नहीं करेंगे। क्योकि सब ने सुनी और देखि हुए है। यहाँ पर बात है औरतो के अधिकारों की। महिला दिवस पर जो समान अधिकार और भी न जाने कितनी बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोग को मेरा एक ही question है, क्या आपके घर में औरतो को आपने basic अधिकार भी दिए है ?
कई घरो में औरतो से कुछ पूछना तो दूर उसको कुछ बताया भी नहीं जाता। सारे काम छुप छुप कर किये जाते है। उसके घर में क्या हो रह है वो भी उसको बाहर से पता लगता है। पूरी दुनिया में सब को सब कुछ पता होता हैं, पर घर की महिला को ही कुछ भी पता नहीं होता। जब वो उसके बारे में पूछती है या उसके खिलाफ आवाज उठाती है, तब उसमे कमिया निकाल कर या उसके माँ बाप का संस्कार के नाम पर उसको दबाया जाता है। ये चीज़े पढ़े लिखे सभ्य घरों में होती है।
वहा पर स्त्री को विवाह केवल एक ही कारन से कर के लाते है ताकि वो घर का चुप चाप काम करे। वो अपनी मर्जी से एक सब्जी भी नहीं बना सकती। वो दूसरा क्या अपनी मर्जी से कर पाती होगी ? शादी के बाद दूसरे ही दिन से उसको शक की निगाह से देखा जाता है। घर में कुछ भी गलत है सबकी नज़रो में वो ही आती है। उसको हमेशा यही अहेसास दिलाया जाता है की वो उस घर की नहीं है। कैसी विडम्बना है १० लोग एक लड़की को अपना नहीं मान सकते, पर उस एक लड़की से ये उम्मीद की जाती है की वो उन दस को अपना माने। उसको हर वक्त अपने आप को साबित करना पड़ता है।
आयशा की एक कहानी हम सब के सामने आयी। ऐसी कई आयशा हर दिन घुट घुट कर जीती है हमारे अपने घरोमे उसका क्या ? हर दिन कितनी महिलाओ को दहेज़ के नाम पर मारा जाता है या आत्महत्या के लिए उकसाया जाता है। क्या इस बात का हमें पता है ? ऐसी महिलाये जब शिकायत करती है तब उसको इज़त के नाम पर, संस्कार के नाम पर या उस पर लांछन लगा कर चुप करा दिया जाता है। अरे दुसरो की छोड़ो अपने खुद के माता पिता भी उसकी नहीं सुनते। उनको भी कही न कही समाज का और इज़्ज़त का डर होता है।
दोस्तों, क्या ये बात जानते है की इंडिया में हर साल १५.६ मिलियन (1. 56 करोड़) भूर्ण हत्या होती है ? जी हा, हर एक साल ३६० दिन में। उसमे हर दिन १० महिला की मौत होती है। हम सब जानते है की ज्यादातर भ्रूण हत्या इसलिए होती है क्योकि गर्भ में लड़की है। सोचिये ये official आकड़े है। रियलिटी में कितनी भ्रूणहत्या होती होगी ? या दिन में कितनी महिलाये मरती होंगे ?
और सुनिए 92 महिला का इंडिया में बलात्कार होता है प्रति दिन। जी है 24 घंटे में 92 महिला। जहा नारी को देवी का स्वरुप मान कर पूजा जाता है, वहा पर 92 महिला का बलात्कार। ये आकड़े भी official है। जो रिपोर्ट होते है। जो नहीं होते उसके विषय में जरा सोचिये। यहाँ पर २ साल की बच्ची से लेकर ८० साल की बूढी औरते भी शामिल है। क्या ऐसे समाज को महिला दिवस मनाने का अधिकार है ?
ये तो महिलाओ पे हो रहे केवल दो अत्याचार के आकड़े है। ऐसे तो दहेज़ के मामले, mental harassment, छेड़खानी, जैसे कई जुर्म है जो रोज हमरी महिलाये ही नहीं छोटी छोटी बछिया भी उसकी शिकार होती होगी।। उसके आकड़े के विषय में यदि सोचेंगे तो दिल दहल जायेगा।
ये भी केवल India में हो रहे अत्याचार है। ऐसा नहीं है की महिलाओ पर जुर्म केवल India में ही है ये सारी चीज़े पूरी दुनिया में भी है। उनके आकड़ो के विषय में यदि हम सोचेंगे तो हमें हमारा दोगलापन नज़र आएगा। वैसे भी महिला दिवस मनाने पर हमें ये पता तो चल ही गया है की दुनिया में महिलाओ की क्या कीमत है। तभी तो ये केवल एक दिन महिला के नाम पर किया गया है।
आयशा की खुदखुशी के बाद मानो हमारा समाज अचानक से कुंभकर्ण की नीद से जग सा गया है। सभी लोग उसके पति को उसके ससुराल वालो को फांसी की सजा की मांग कर रहे है। सरकार को कड़क कायदे बनाने की बात कर रहे है। पर क्या उसके पति को फांसी देकर या कड़क कायदा ला कर इस समस्या का हल निकलेगा ? क्या इससे आयशा या आशा बच पायेगी ? क्या समाज में हो रहे ये गुनाह बंध हो जायेंगे ?
इसका जवाब है नहीं ,क्योकि ऐसा नहीं है की कोई सख्त कानून नहीं बनाया है। केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि हर एक देश में बहुत ही सख्त कायदे कानून बनाये गए है। पर फिर भी ये आकड़े दिन पर दिन बढ़ रहे है। ऐसा क्यों हो रहा है उस पर चिंतन करने की जरुरत है।
ये समाज हमारीऔर आपकी सोच से बनता है। जो सोच होगी वैसे ही लोग हमारे समाज में बर्ताव करेंगे। यदि सही में हमें कुछ करना है तो हमें सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होंगी। उसकी शुरुआत हमें पाने घर से करनी होंगी। हम मने या न मने पर हर घर में काम ज्यादा ही सही पर लड़की और लड़के के बारे में भेदभाव तो है ही। कही पर लड़कियों को रोटी बगैर घी में दी जाती है, या भाई का या पिता का जूठा खाना मिलता है। तो कही पर लड़कियों को कपड़ो की पाबंदी होती है। कही पर पढ़ने की पाबंदी तो कही पर घर से बहार निकलने की पाबंधी।
में ये नहीं कहती की लड़कियों को हर किस्म की छूट दी जाये। पर मेरा कहना केवल इतना ही है जो कायदे कानून लड़कियों के लिए बनाओ वही घर के लड़को के लिए भी होने चाहिए। यदि हम लड़कियों को ये सिखाते है की छोटे कपडे मत पहनो, वही पर लड़के को भी ये सीखना चाहिए की लड़कियों को मत घूरो। लड़को को भी ये सीखना चाहिए की जितना अधिकार तुम्हारा ही घूमने फिरने का उतना ही लड़कियों का भी है। उसको मत छेड़ो, महिला की इज़्ज़त करो। क्या ये सरे संस्कार लड़को को नहीं देना चाहिए? कितने घरो में ये बाटे लड़को को सिखाई जाती है ?
अरे लड़किया अपने ऊपर हो रही छोटी सी छेड़खानी भी अपने माता पिता को बताने से डरती है। उसको पता है उसको ही डाट मिलेगी और घर से बहार निकलना भी बंध हो जायेगा। जब यदि कोई अपने बेटे की शिकायत करे की उसने किसी को छेड़ा है तब क्या हम उसका घर से निकलना बंध करते है ? सोचिये ये कैसा समाज बनाया है हमने ?
हमारे आस पास ऐसे कई घर होंगे जहा पर लड़के अपने माँ की, अपनी बहन की इज़्ज़त नहीं करते। तो वो दूसरे की बेटियों की इज़्ज़त कहा से करेंगे ? क्यों की बचपन से ही उनके दिमाग में यही भूसा भरा जाता है की तुम लड़के हो तुम औरतो के साथ कुछ भी कर सकते हो। ये मानसिकता हम औरत और मर्द दोनों के दिमाग में है, इसीलिए जब किसी औरत के साथ गलत होता है तब सारा दोष उस औरत को दिया जाता है। वो इसी मानसिकता के कारन।
इसका सब से बड़ा उदाहरण है जो अपनी परिवार के लिए जिस्म बेचती है उसका नाम तो वैश्य है। पर अपने घर में बीवी बच्चे होने के बाद भी उनके पास जा के चंद पैसे देकर उनका शोषण करने वाले का कोई भी नाम नहीं है। ऐसे मर्द को हम क्या बुलाएंगे ? ये वैश्य वृति आज से नहीं बल्कि हर एक युग में थी। यानि हमारी ये मानसिकता आज की नहीं बल्कि सालो से है।
जरुरत है तो इस मानसिकता को बदलने की । साल में केवल एक दिन महिलाओ को विश करने से gift देने से कुछ नहीं होगा। यदि हमें सच में women empowerment चाहिए तो हमें अपने ये घटिया और दोगली सोच को छोड़कर एक नयी सोच बनानी पड़ेगी। इसके लिए बहुत ही जरुरत है हर एक महिला को जागरूक होने की । हर एक को किसी भी महिला के साथ हो रहे जुर्म के खिलाफ आवाज उठानी पड़ेगी। हमारे बेटे और बेटी दोनों के एक से विचार एक से संस्कार देना होगा। तभी जाकर हम एक नए समाज का निर्माण कर पाएंगे। मायने में महिला दिवस मानाने के हम लायक बनेंगे।
आईये हम ये संकल्प ले की हम एक ऐसे समाज का निर्माण करेंगे जहा पे केवल साल में एक दिन विमेंस डे नहीं बल्कि पूरा साल ऐसे ही महिलाओ के अधिकार के बारे में सजग रहे। महिलाओं के best gift respect, love, trust, care हमेशा दे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box.