Success tips with Arunima Sinha
जिस दिन किसी भी लक्ष के प्रति आपकी अंतर आत्मा जग गई उस दिन आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
दोस्तों, जरा सोचिये हमें अगर कोई चलती ट्रैन में से निचे फेंक देता है, और हमारे दोनों पाव चले जाये तो हम उस समय क्या सोचेंगे? लगभग हम सब उस समय सब से पहले तो भगवान को कोसेंगे। suicide का सोचेंगे। हमारा जीवन निराशा से भर जायेगा। अब आगे क्या ? ये सोच सोच कर हम depression में चले जायेंगे। जिस इंसान ने हमें फेका उससे कैसे हम बदला ले ? यही सारी बातें हमारे दिमाग में होती है।
यही फर्क होता है एक आम इंसान में और एक चैम्पियन में। आज हम भारत की पहली अपाहिज महिला जिसने mount Everest सर किया (अरुणिमा सिन्हा ) उसके जीवन की कहानी के जरिये success tips देखेंगे।
लोगो की मत सुनो।
जब अरुणिमा सिन्हा को चलती ट्रैन से इसलिए फेका निचे क्योकि उन्होंने बदमाशों को उसने अपनी सोने की चैन नहीं देनी थी। उसको चलती ट्रैन से निचे फेक दिया और उसके दोनों पैर कट गए। अरुणिमा एक नेशनल प्लेयर थी। उसको treatment तो अच्छी मिली, पर न्यूज़ चैनेलों और अख़बार वालो ने बिना कोई पड़ताल किये उसके ऊपर बिना टिकट के ट्रैन में चढ़ने का आरोप लगाया। उनके घर वालो ने उसका खंडन किया तो दूसरा इलज़ाम लगाया की वो आत्महत्या करने जा रही थी।
अरुणिमा के घर वाले चिल्लाते रह गए की ये सब जूठ है। पर उसकी सुनने वाला कोई भी नहीं था। एक आम आदमी की चाहे कितना भी चिल्लाए पर बड़े बड़े मिडिया वालो के सामने उनकी कौन सुनता ? जिस लड़की के एक पाँव कट गया था, एक पाँव पूरी तरह से फेक्चर था। उसकी जिंदगी का पता नहीं था। यहाँ तक की उनकी स्पाइन में ३ फेक्चर था। उसके ये भी नहीं पता था की वो कभी उठ भी पाएंगी के नहीं।
हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते के उस पे और उसके परिवार पे क्या बीती होंगी।
इस हालत में जब कोई भी आम इन्सान हताश हो जाता, depression में चला जाता या बदले की भावना उसके मन में घर कर जाती। मगर ये अरुणिमा सिन्हा थी जिसने hospital के bad पर अपने कटे हुए पाव को देख कर, और न्यूज़ में छपी खबरों को देख कर सोचा की, आज तुम्हार दिन है, पर कल मेरा दीन होगा। मैं एक दिन साबित कर दूंगी की मैं क्या हूँ ?अब मैं वो मक़ाम हासिल करुँगी जब मुझे सुना भी जायेगा और माना भी जायेगा। अब मैं वॉलीबॉल नहीं पर दुनिया का सब से बड़ा पर्वत (एवेरेस्ट) सर करूंगी।
वो पर्वत जिसको सर करने की कल्पना भी हम जैसे पुरे लोग सोच भी नहीं सकते। उसको सर करने का निर्णय अरुणिमा ने अपने कटे पैरो को देख के लिया। शायद यही फर्क है एक आम इंसान में और एक सक्सेसफुल इंसान में।
कोई भी ऐसी बाते सुनेगा तो यही लगेगा की पैर के साथ उसका दिमाग भी चला गया है। अरुणिमा के साथ भी यही हुआ। लोगो को लगा की उसको बहुत ही गहरा सदमा लगा है। यहाँ तक की लोगो उनके सामने कटाक्ष कर ने भी चालू किये। सब का एक ही कहना था की, चुप चाप घर बैठो और अब आगे कैसे जीवन व्यतीत करना है उसके बारे में सोचो।
पर ये अरुणिमा थी। वो कहा किसी की सुन ने वालो में से थी। उसने तो जैसे तय कर ही लिया था। जब न्यूज़ चैनल में चली न्यूज़ से वो नहीं टूटी, तो आम लोगो की बातो से भला वो कैसे अपने लक्ष को छोड़ देती ? उसके ऊपर तो मानो जूनून था। उसने बिना किसि की भी सुने अपने लक्ष की और कदम बढ़ाना शुरू कर दिया।
जो सोचो वो करो।
hospital से निकल ने के बाद उनका एक पैर नकली था और एक पैर पूरी तरह से फेक्चर था। लोग ये सोचते है की अब आगे का जीवन कैसे जिए ? जब हम जैसे आम लोग दुसरो के प्रति सहानुभूति की उम्मीद करते है। 'बेचारे' बन कर जीते है। उस समय उसके मन में दो ही बाते चल रही थी की, लोगो को जवाब कैसे देना है और Everest सर कैसे करना है ?
करनी और कथनी में बहोत ही बड़ा अंतर होता है। अरुणिमा ने केवल सोच ही नहीं पर करना भी था। hospital से निकल ने के बाद वो सीधा बछेंद्री पाल (पहली भारतीय महिला जिस ने Everest सर किया था। ) उसके पास गयी।
कहते है की हिरा को केवल जोहरी ही परख सकता है। एक सफल इंसान को केवल एक successful इंसान ही परख सकता है । अरुणिमा को देख के बछेंद्री पाल ने कहा ही, ' अरुणिमा तुम ने ये सोचा तब ही तुम ने Everest सर कर लिया है, अब केवल लोगो को दिखाने के लिये ही सर करना बाकि है।'
बछेंद्री पाल ने अरुणिमा के लिए फाइनेंस से ले कर सारी तैयारिया करवा दी। अब बारी थी अरुणिमा को अपने आपको साबित करने की।
Hard Work
You get what you work for, not what you wish for.
success के लिए केवल सपने से काम नहीं चलेगा पर उसको पाने के लिए hard work चाहिए। जितने आसान काम सपने देखने का है उससे कई गुना ज्यादा महेनत करनी पड़ती है।
अरुणिमा को Everest सर करने के लिए उसकी तालीम की व्यवस्था तो कर दी थी। पर उसके लिए ये training करना बहुत ही मुश्किल था। रोड पर से बेस कैंप पहोचने में दूसरे लोगो को जहा २ मिनट्स लगते थे वही पर अरुणिमा को 3 घंटे लगते थे। २ minutes का सफर उसके लिए 3 घंटे का था।
इसी एक बात से हम समज सकते है की अरुणिमा को दूसरे के मुकाबले कितनी गुना ज्यादा महेनत करनी पड़ेगी। जब भी हम दुसरो से ज्यादा महेनत करते है और दूसरे कम महेनत में हम से ज्यादा सफलता प्राप्त करते है, तब हम हताश हो कर के शिकायतों में और अपने नसीब को कोष ने में अपनी सरे energy खर्च कर देते है।
पर successful लोग अपनी एनर्जी को सबसे बहेतर बनाए में लगाते है। अरुणिमा ने इस बात को एक challenge के रूप में लिया और केवल आठ महीने की training के समय बेसकैम्प से पूरा सामान ले कर निकल कर चोटी पर सबसे पहले पहुँचती थी।
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