दुख का एकमात्र कारण -अपेक्षा/कामना💐
दोस्तों, हम सब ने हमारे जीवन में ऐसे व्यक्ति हमेशा देखे होंगे जो हमशा दुखी ही रहते है। आप उनके लिए कुछ भी कर लो वो कभी भी खुश रह ही नहीं सकते। उनको हमशा अपने जीवन से, अपने आस पास के व्यक्ति से यहाँ तक की भगवान से भी शिकायते ही रहती है।
ऐसा नहीं होता की उनके पास कुछ भी नहीं होगा। उनके पास सबकुछ होता है। उनके पास सबकुछ होता है। अच्छी नौकरी, अच्छा परिवार, घर, परिजन। सब कुछ होने के बाद भी उनके जीवन में हमेशा असंतोष और दुःख ही रहता है।
वही दूसरी और ऐसे व्यक्ति भी देखे है जिन के चारे पर कभी भी मुस्कराहट हटती ही नहीं। जब भी देखो वो हमेशा खुश ही। चाहे उनके जीवन में कितनी भी समस्या क्यों न हो वो हमेशा खुश ही दिखाई देते है।
हलाकि आज कल ऐसे लोग कंही है जो हर हल में खुश रहते हो। पर ऐसे लोग होते है ये हकीकत है। अब सवाल ये उठता है की ऐसा क्यों ?
दोस्तो, हम चाहे माने या ना माने पर सुख और दुःख कई बार केवल हमारे नजरिये पर depend होता है। एक ही बात पर कोई खुश भी रहता है और वही बात पर कोई दुखी भी हो जाता है।
इस बात को हम एक कहानी के माध्यम से समज ते है। तो शायद उसे समझना हमारे लिए आसान हो जाये।
एक बार एक सेठजी ने पंडित जी को भोजन के लिए आमन्त्रित किया पर पंडित जी का एकादशी का व्रत था तो पंडित जी नहीं जा सके थे इसलिए पंडित जी ने अपने दो शिष्यो को सेठजी के यहाँ भोजन के लिए भेज दिया.
पर जब दोनों शिष्य वापस लौटे तो उनमे एक शिष्य दुखी और दूसरा प्रसन्न था!
पंडित जी को देखकर आश्चर्य हुआ और पूछा बेटा क्यो दुखी हो -- क्या सेठ ने भोजन मे अंतर कर दिया ?
"नहीं गुरु जी"
क्या सेठ ने आसन मे अंतर कर दिया ?
"नहीं गुरु जी"
क्या सेठ ने दक्षिणा मे अंतर कर दिया ?
"नहीं गुरु जी ,बराबर दक्षिणा दी 2 रुपये मुझे और 2 रुपये दूसरे को"
अब तो गुरु जी को और भी आश्चर्य हुआ और पूछा फिर क्या कारण है ?
जो तुम दुखी हो ?
तब दुखी चेला बोला गुरु जी मे तो सोचता था सेठ बहुत बड़ा आदमी है कम से कम 10 रुपये दच्छिना देगा पर उसने 2 रुपये दिये इसलिए मे दुखी हू !!
अब दूसरे से पूछा तुम क्यो प्रसन्न हो ?
तो दूसरा बोला गुरु जी मे जानता था सेठ बहुत कंजूस है आठ आने से ज्यादा दच्छिना नहीं देगा पर उसने 2 रुपए दे दिये तो मे प्रसन्न हू ...!
बस यही हमारे मन का हाल है संसार मे घटनाए समान रूप से घटती है पर कोई उनही घटनाओ से सुख प्राप्त करता है कोई दुखी होता है ,पर असल मे न दुख है न सुख ये हमारे मन की स्थिति या अपेक्षा के स्तर पर निर्भर है!
कामना पूरी न हो तो दुख और कामना पूरी हो जाये तो सुख पर यदि कोई कामना ही न हो तो आनंद ...
दोस्तों, हमारी ख़ुशी हमने हमेशा दुसरो के हाथ में रखी है। हम हमेश से दुसरो पर अपेक्षा रखते है। साथ में ये आशा भी रखते है की वो आशा पूर्ण भी हो। पर हमेशा दुसरो पर हुई आशा पूरी नहीं होती। इसलिए हमेशा हम दुखी ही रहते है।
हमने कईबार बीवी, पति, बच्चे, बॉस यहाँ तक की पड़ोसियों की बजहसे अपने आपको दुखी मानते हुआ लोगो को भी देखा है। ऐसा क्यों ? किसी बीवी ख़राब होने से या बच्चे ख़राब होने से या किसी और के ख़राब होने से वो इतना दुखी क्यों होता है ?
क्योकि वो उसमे हमेशा कमियों को ही देखता है। उसकी एक कमी पर ही उसका ध्यान है। उसकी बाकि की अच्छाइया पर उसका ध्यान ही नहीं है या ये कहे की वो देखना ही नहीं चाहता।
वही दूसरी और हमने ऐसे लोगो को भी देखा है जिनके चेहरे पर से मुस्कान कभी जाती ही नहीं। चाहे उनके जीवन में कितनी भी विकट परिस्थितिया क्यों न आ जाये पर वो हमेशा हसते ही रहते है। उनके जीवन में चाहे लाख मुसीबते क्यों न हो वो कभी किसी को भी दोष नहीं देंगे।
चाहे किसी ने उनके साथ कितना भी बुरा क्यों न किया हो पर उनको किसी से कोई शिकायते नहीं रहती। क्योकि ऐसे लोगो ने अपनी खुशिया किसी दूसरे के हाथ में नहीं दी है। उनकी ख़ुशी उनके अपने हाथ में है। उनका फोकस problem पर नहीं बल्कि solution पर होता है।
याद रहे जितनी ज्यादा अपेक्षा हम दुसरो पे रखेंगे उतने ही हम ज्यादा दुखी होंगे। जब हम अपने आपको खुश नहीं कर सकते तो हम दुसरो पर ये आशा कैसे रख सकते है ? हमारी ख़ुशी हमारे हाथो में होनी चाहिए। न की दुसरो पर।
जिस दिन हमने अपनी खुशिया की जिम्मेदारी अपने हाथो में ले ली उस दिन हमें कोई दुखी कर ही नहीं सकता। उस दिन हम सच में अपना जीवन जियेंगे।
Best quotes
NO ONE CAN MAKE YOU HAPPY, UNTIL YOU ARE HAPPY YOUR SELF.
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