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COMMITMENT

  एक युवा युगल के पड़ोस में एक वरिष्ठ नागरिक युगल रहते थे , जिनमे पति की आयु लगभग अस्सी वर्ष थी , और पत्नी की आयु उनसे लगभग पांच वर्ष कम थी।  युवा युगल उन वरिष्ठ युगल से बहुत अधिक लगाव रखते थे , और उन्हें दादा दादी की तरह सम्मान देते थे।  इसलिए हर रविवार को वो उनके घर उनके स्वास्थ्य आदि की जानकारी लेने और कॉफी पीने जाते थे।  युवा युगल ने देखा कि हर बार दादी जी जब कॉफ़ी बनाने रसोईघर में जाती थी तो कॉफ़ी की शीशी के ढक्कन को दादा जी से खुलवाती थी।  इस बात का संज्ञान लेकर युवा पुरुष ने एक ढक्कन खोलने के यंत्र को लाकर दादी जी को उपहार स्वरूप दिया ताकि उन्हें कॉफी की शीशी के ढक्कन को खोलने की सुविधा हो सके।  उस युवा पुरुष ने ये उपहार देते वक्त इस बात की सावधानी बरती की दादा जी को इस उपहार का पता न चले ! उस यंत्र के प्रयोग की विधि भी दादी जी को अच्छी तरह समझा दी।  उसके अगले रविवार जब वो युवा युगल उन वरिष्ठ नागरिक के घर गया तो वो ये देख के आश्चर्य में रह गया कि दादी जी उस दिन भी कॉफी की शीशी के ढक्कन को खुलवाने के लिए दादा जी के पास लायी ! !! युवा युगल ये सोचने लगे कि शायद दादी जी उस यंत्र का प्र

point of view

 एक शहर में एक धनी व्यक्ति रहता था, उसके पास बहुत पैसा था। और उसे इस बात पर बहुत घमंड भी था। एक बार किसी कारण से उसकी आँखों में इंफेक्शन हो गया।  आँखों में बुरी तरह जलन होती थी, वह डॉक्टर के पास गया लेकिन डॉक्टर उसकी इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाया। सेठ के पास बहुत पैसा था उसने देश विदेश से बहुत सारे नीम- हकीम और डॉक्टर बुलाए। बड़े डॉक्टर ने बताया की आपकी आँखों में एलर्जी है। आपको कुछ दिन तक सिर्फ़ हरा रंग ही देखना होगा और कोई और रंग देखेंगे तो आपकी आँखों को परेशानी होगी।  अब क्या था, सेठ ने बड़े बड़े पेंटरों को बुलाया और पूरे महल को हरे रंग से रंगने के लिए कहा। वह बोला- मुझे हरे रंग से अलावा कोई और रंग दिखाई नहीं देना चाहिए मैं जहाँ से भी गुजरूँ, हर जगह हरा रंग कर दो। घर तो हरे रंग का हो गया किन्तु जब वे बहार जाते थे तब उनको दूसरा रंग देखना ही पड़ता था। इस  ने राजा से आज्ञा ले के पुरे नगर में भी हरा रंग लगवा दिया।  इस काम में बहुत पैसा खर्च हो रहा था लेकिन फिर भी सेठ की नज़र किसी अलग रंग पर पड़ ही जाती थी क्यूंकी पूरे नगर को हरे रंग से रंगना को संभव ही नहीं था, सेठ दिन प्रतिदिन पेंट करा

don't follow blindly

  फोर्ड कंपनी के संस्थापक हेनरी फोर्ड एक बार एक बुक स्टॉल में गए। जहा उन्होंने एक बुक देखि। जिसका नाम था कम समय में कैसे ज्यादा पैसे कमाए जाये। हेनरी फोर्ड वो बुक देखने लगे। तभी बुक स्टाल के  मालिक ने कहा की, इसका लेखक यही पर है क्या आप उनसे मिलना चाहेंगे? हेनरी फोर्ड ने मिलने की इच्छा जताई, तभी वहा पे उस बुक का राइटर आया। हेनरी फोर्ड ने उसे सर से लेके पाव तक देखा। वह बहुत बुरे हाल में था उसका कोट और हैट बहुत ही पुराणी और फटी हुए थी। हेनरी फोर्ड ने तुरंत  वह बुक निचे रखदी। बुक स्टॉल वाले ने जब उसका कारन पूछा तो हेनरी फोर्ड ने उसक उत्तर देते हुए कहा की, "जिसके नुस्खेसे वह स्वयं ही कुछ हासिल नहीं कर पाया उससे मुझे क्या फायदा होगा ?" फिर वह उस राइटर की और देखते हुए  कहा के,  वैसे तुम कैसे जाओगे अपने घर तुम्हारे पास तो कार नहीं होगी न?" उस राइटर ने कहा की, "नहीं में तो मेट्रो से चला जाऊंगा।" तब हेनरी फोर्ड ने कहा की मुझसे आके मिलना मेरे पास कई कार है मैं तुम्हे सस्ते में दिलवा दूंगा। लोगो को वह विचार मत दो जिससे तुम कुछ हासिल नहीं कर पाए।" यह कहानी उन सभी को स

mantra for success

 एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि मुझे जल्दी से जल्दी सफलता चाहिए। कोई ऐसा तरीका बताएं, जिससे हर समस्या जल्दी से जल्दी हल हो सकती है।  गुरु ने शिष्य से कहा कि ठीक है मैं एक ऐसा तरीका बता दूंगा, जिससे सारी दिक्कतें दूर की जा सकती हैं। लेकिन, पहले तुम मेरी बकरी को खूंटे से बांध दो। गुरु ने बकरी की रस्सी शिष्य के हाथ में पकड़ा दी।शिष्य ने कहा ठीक है। उसको तो ये काम बहुत ही सरल लग रहा था। मगर बकरी किसी से भी आसानी से काबू में नहीं आती थी। यह बात शिष्य नहीं जनता था।  शिष्य ने जैसे ही बकरी को खूंटे से बांधने लगा, वह उछल-कूद करने लगी। शिष्य को बहुत ही गुस्सा आ रहा था। वह बकरी को जितना ज्यादा कस के बांधने का प्रयास कर रहा था, उतनी ही ज्यादा बकरी उछल कूद कर रही थी। और वह शिष्य की पकड़ में नही आ रही थी। बहुत कोशिश करने के बाद भी बकरी काबू में नहीं आ रही थी। शिष्य ने जितना सोचा था उतना ये आसान काम नहीं था। ।थोड़ी ही देर में वह थक हर के बेठ गया। तब उसको उसके गुरु की सीखाइ बात याद आई।  के हर काम बल से नहीं होता , जो काम बल से करना असंभव हो वो बुद्धि

lord krishna and management

   भगवान कृष्ण का पूरा जीवन मैनेजमेंट के नजरिए से आदर्श है। श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व से जुड़ी ज्यादातर चीजें, जो उनके जीवन का प्रमुख हिस्सा रहीं, वे सब उन्हें उपहार में मिली थीं। इन सभी चीजों के बारें में भागवत, पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, गर्ग संहिता जैसे ग्रंथों में बताया गया है। अलग-अलग ग्रंथों में इन चीजों के संबंध अलग-अलग तरीके से उल्लेख किया गया है। जैसे, नंदबाबा से बांसुरी, राधा से मोरपंख। ये चीजें श्रीकृष्ण की पहचान हैं। ये बताती हैं कि इंसान को जहां से भी कुछ अच्छा मिल सके उसे अपने जीवन में उतारना चाहिए। दूसरों की अच्छी आदतों को सीखना, ज्ञान लेना और अपनों से मिली चीजों को सम्मान देना चाहिए। बांसुरी श्रीकृष्ण को उनके जीवन में कई उपहार मिले थे और अधिकतर उपहार हमेशा उनके साथ ही रहे। नंद बाबा ने बालकृष्ण को बांसुरी दी थी। बचपन का ये उपहार उन्होंने हमेशा अपने साथ ही रखा। जीवन प्रबंधन- बांसुरी अंदर से खोखली होती है, लेकिन अपनी मीठी आवाज से दूसरों के मन मोह लेती है। बांसुरी की सीख यह है कि हमें अपने आचरण को अहंकार, लालच, क्रोध जैसी बुराइयों से खाली रखना चाहिए और सभी मीठा बोलना चाहिए