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Kisi ka bharosa mat todna

 भरोसा कल दोपहर घर के सामने छोटे से नीम के पेड़ के नीचे खड़ा होकर मैं मोबाइल पर बात कर रहा था। पेड़ की दूसरी तरफ एक गाय-बछड़े का जोड़ा बैठा सुस्ता रहा था और जुगाली भी कर रहा था। उतने में एक सब्जी वाला पुकार लगाता हुआ आया। उसकी आवाज़ पर गाय के कान खड़े हुए और उसने सब्जी विक्रेता की तरफ देखा।  तभी पड़ोस से एक महिला आयी और सब्जियाँ खरीदने लगी। अंत में मुफ्त में धनियाँ, मिर्ची न देने पर उसने सब्जियाँ वापस कर दी।  महिला के जाने के बाद सब्जी विक्रेता ने पालक के दो बंडल खोले और गाय-बछड़े के सामने डाल दिए... मुझे हैरत हुई और जिज्ञासावश उसके ठेले के पास गया। खीरे खरीदे और पैसे देते हुए उससे पूछा कि उसने 5 रुपये की धनियां मिर्ची के पीछे लगभग 50 रुपये के मूल्य की सब्जियों की बिक्री की हानि क्यों की ?  उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- भईया जी, यह इनका रोज़ का काम है। 1-2 रुपये के प्रॉफिट पर सब्जी बेच रहा हूँ। इस पर भी फ्री... न न न! मैंने कहा- तो गइया के सामने 2 बंडल पालक क्यों बिखेर दिया ?  उसने कहा- फ्री की धनियां मिर्ची के बाद भी यह भरोसा नहीं है कि यह कल मेरी प्रतीक्षा करेंगी किन्तु यह गाय-बछड़ा मेरा जरूर

Ram katha.

अनकही रामकथा।   श्री रामजी अपार गुणों के समुद्र हैं, क्या उनकी कोई थाह पा सकता है? संतों से मैंने जैसा कुछ सुना था, वही आपने सुना है, वही आपको सुना रहा हुं।  राजा जनक के शासनकाल में एक व्यक्ति का विवाह हुआ। जब वह पहली बार सज सँवरकर ससुराल के लिए चला, तो रास्ते में चलते चलते एक जगह उसको दलदल मिला, जिसमें एक गाय फँसी हुई थी, जो लगभग मरने के कगार पर थी।  उसने विचार किया कि गाय तो कुछ देर में मरने वाली ही है तथा कीचड़ में जाने पर मेरे कपड़े तथा जूते खराब हो जाएँगे, अतः उसने गाय के ऊपर पैर रखकर आगे बढ़ गया। जैसे ही वह आगे बढ़ा गाय ने तुरन्त दम तोड़ दिया तथा शाप दिया कि जिसके लिए तू जा रहा है, उसे देख नहीं पाएगा, यदि देखेगा तो वह  मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी।  वह व्यक्ति अपार दुविधा में फँस गया और गौ शाप से मुक्त होने का विचार करने लगा।  ससुराल पहुँचकर वह दरवाजे के बाहर घर की ओर पीठ करके बैठ गया और यह विचार कर कि यदि पत्नी पर नजर पड़ी, तो अनिष्ट नहीं हो जाए। परिवार के अन्य सदस्यों ने घर के अन्दर चलने का काफी अनुरोध किया, किन्तु वह नहीं गया और न ही रास्ते में घटित घटना के बारे में किसी को बताय

Ashtavakra Gita kaise bani ?

राजा जनक और अष्टावक्र प्राचीन भारत में मिथिला के राजा जनक के नाम से प्रसिद्ध एक धर्मात्मा राजा थे। वे बहुत ज्ञानी और साधु प्रवृत्ति के थे। उन्हें सत्य की खोज थी और वे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। एक दिन उन्होंने घोषणा की कि जो भी उन्हें ब्रह्मज्ञान का सच्चा अर्थ समझा देगा, उसे वे अपना गुरु बना लेंगे। राजा जनक की इस घोषणा को सुनकर कई विद्वान, ऋषि-मुनि और साधु उनके दरबार में पहुँचे, लेकिन कोई भी राजा जनक की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका। तब एक दिन अष्टावक्र नामक एक युवा ऋषि वहाँ पहुँचे। अष्टावक्र का शरीर विकृत था, उनकी आठ अंग टेढ़े-मेढ़े थे, इसलिए उनका नाम अष्टावक्र पड़ा। जब अष्टावक्र दरबार में प्रवेश कर रहे थे, तो दरबारियों ने उनके विकृत शरीर को देखकर उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। अष्टावक्र ने इस पर कुछ नहीं कहा और सीधे राजा जनक के पास पहुँचे। राजा जनक ने उनका आदरपूर्वक स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिए स्थान दिया। अष्टावक्र ने राजा जनक से पूछा, "राजन, आप किस खोज में हैं?" राजा जनक ने उत्तर दिया, "मुझे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करनी है।" अष्टाव

dukh ka karan kya hota hai ? happy life tips in hindi

 दुख का एकमात्र कारण -अपेक्षा/कामना💐  happy life tips in hindi दोस्तों, हम सब ने हमारे जीवन में ऐसे व्यक्ति हमेशा देखे होंगे जो हमशा दुखी ही रहते है। आप उनके लिए कुछ भी कर लो वो कभी भी खुश रह ही नहीं सकते। उनको हमशा अपने जीवन से, अपने आस पास के व्यक्ति से यहाँ तक की भगवान से भी शिकायते ही रहती है।  ऐसा नहीं होता की उनके पास कुछ भी नहीं होगा। उनके पास सबकुछ होता है। उनके पास सबकुछ  होता है। अच्छी नौकरी, अच्छा परिवार, घर, परिजन। सब कुछ होने के बाद भी उनके जीवन में हमेशा असंतोष और दुःख ही रहता है।   वही दूसरी और ऐसे व्यक्ति भी देखे है जिन के चारे पर कभी भी मुस्कराहट हटती ही नहीं। जब भी देखो वो हमेशा खुश ही।  चाहे उनके जीवन में कितनी भी समस्या क्यों न हो वो हमेशा खुश ही दिखाई देते है।  हलाकि आज कल ऐसे लोग कंही है जो हर हल में खुश रहते हो। पर ऐसे लोग होते है ये हकीकत है। अब सवाल ये उठता है की ऐसा क्यों ? दोस्तो, हम  चाहे माने या ना माने पर सुख और दुःख कई बार केवल हमारे नजरिये पर depend होता है। एक ही बात पर कोई खुश भी रहता है और वही बात पर कोई दुखी भी हो जाता है।  इस बात को हम एक कहानी के

Why Children Lie - बच्चे झूठ क्यों बोलते हैं | Parenting Tips in hindi part 4

How to be a best parents  दोस्तों, जब बच्चे का जन्म होता है तब बच्चा एक अबोध और मासूम होते है। उसको सच या झूठ  का, गलत-सही का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता। पहले के समय में ये कहा जाता था की १० वर्ष की आयु तक बच्चा जो भी करता है उसका कर्म फल नहीं बंधता। क्योकि बच्चा अबोध होता है। वो निर्मल होता है। उसको समज ही नहीं होती है।  अब यहाँ पर प्रश्न ये उठता है की यदि बच्चा अबोध होता है तो वो झूठ  बोलना कैसे सीखता है ? आज कल के बच्चे तो बहुत ही कम आयु में या ये कहे की शुरू से ही झूठ बोलना चालू कर देते है। जब की हम सब बच्चो को यही सिखाते है की झूठ  नहीं बोलना चाहिए। ये गलत है। हमें पाप लगता है। वगेरा.. वगेरा....  दोस्तों हम चाहे माने  या न माने पर बच्चे झूठ  बोलना घर से ही सिखाते है। उसमे भी सबसे ज्यादा अपने माता-पिता से ही सिखते है। हम ही आने अनजाने में बच्चोकोझूठ  बोलना सिखाते है।  यहाँ पर मैं कुछ सीन दिखती हूँ। इस से मेरी बात और भी जायदा स्पष्ट हो जाएगी।  Scene 1  सोचिये यदि हमारा  जाने का प्रोग्राम है और इसी समय कोई friend या relative हमारे यहाँ आने के लिए कॉल करते है। तब हम क्या करते है ? ज्यादा